लघु -कथा --- मगध के राजा ने अपने पुत्र को राज्य का भार सौंपकर शेष जीवन भक्ति और साधना में लगाने का निश्चय किया l वे चाहते थे कि उनके पुत्र का प्रमुख सलाहकार एक ऐसा व्यक्ति हो जो धर्म के मर्म को समझता हो और निष्ठावान भी हो l परीक्षा लेने के लिए उन्होंने राज्य में घोषणा करा दी कि वे राजकुमार को निष्कासित कर रहे हैं , जो उसका साथ देगा उसे मृत्युदंड दिया जायेगा l राजकुमार के तीन घनिष्ठ मित्र थे l वे तीनों दावा करते थे कि वे राजकुमार के लिए प्राण भी दे सकते हैं प-परन्तु जब राजकुमार उनसे मिलने गया तो दो मित्रों ने मिलने से भी मना कर दिया l तीसरा मित्र बोला ---- " मित्र ! मैं तुम्हारे सुख के दिनों का साथी रहा हूँ तो दुःख के दिनों में भी तुम्हारा साथ दूंगा , लेकिन उसके पहले मैं राजा से मिलकर कुछ बात करना चाहता हूँ l वह युवक राजमहल पहुंचा , उसने विनम्रता से राजा से पूछा ---" राजन ! आखिर राजकुमार ने ऐसा कौन सा अपराध किया कि उसे देश निकाला दिया जा रहा है ? बिना अपराध के किसी को दंड देना न्यायोचित नहीं है l " राजा बोले ---- " तुम राजकुमार की छोड़ो , अपनी बात कहो l तुम उसका साथ दोगे या नहीं ? " वह बोला --- " मैं प्राण देकर भी मित्र धर्म का पालन करूँगा l " राजा समझ गए कि राजकुमार का यही मित्र उसका प्रमुख सलाहकार बनने योग्य है l
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