' काहु न कोउ सुख दुःख कर दाता l निज कृत करम भोग सबु भ्राता l l हम जो आज हैं , वह हमारे अतीत में किए गए कर्मों का ही परिणाम है और भविष्य में हम जो भी होंगे , जिस स्थिति में होंगे , वह हमारे वर्तमान में किए गए , कर्मों का ही परिणाम होगा l महाभारत का प्रसंग है ---- जब भगवान श्री कृष्ण शांतिदूत बनकर हस्तिनापुर गए और वहां दुर्योधन को समझाने लगे l तब दुर्योधन समझने के बजाय उन्हें बंदी बनाने चला , तब भगवान ने उस सभा में अपना विराट स्वरुप दिखाया l उस समय धृतराष्ट्र को अपने अंधेपन का बहुत दुःख हुआ l वे सोचने लगे कि यदि अंधे न होते तो इस विराट स्वरुप के दर्शन कर पाते l उन्होंने अपना यह दुःख भगवान को बताते हुए पूछा --- " हे माधव ! मैं केवल यह जानना चाहता हूँ कि मेरे किस संस्कार व कर्म के अशुभ प्रभाव ने मुझे इस अंधेपन का दंड दिया ? " धृतराष्ट्र के ऐसा कहने पर श्रीकृष्ण वहीँ उसी सभा में ध्यानस्थ हो गए l फिर उन्होंने कहा --- " धृतराष्ट्र ! मैं आपके पिछले सात जन्मों को देख रहा हूँ , इनमे से किसी जन्म में ऐसा कोई कर्म नहीं है , जिसके कारण आपको अँधा होना पड़े l " इस पर धृतराष्ट्र ने कहा --- " तब क्या प्रकृति ने मेरे साथ अन्याय किया है ? " इस पर श्रीकृष्ण बोले --- " प्रकृति कभी किसी के साथ अन्याय नहीं करती है l राजन ! आप थोड़ा ठहरें l " भगवान ने उनके और पूर्व जन्मों को ध्यान में देखा , फिर कहा ---- " हे महाराज ! आपके वर्तमान जीवन से पहले का 108 वां जन्म देख रहा हूँ l इसमें मैं देख रहा हूँ कि एक किशोर बालक एक पेड़ के घोंसलों से चिड़िया के बच्चों की आँखों को कांटे चुभोकर फोड़ रहा है l यह किशोर स्वयं आप हैं l पिछले जन्मों में शुभ कर्मों के कारण आपका यह संस्कार उभर नहीं सका l इस जन्म में आपका यह संस्कार उभरा और उससे जुड़ा कर्मफल भी उभरा , जिसके परिणाम स्वरुप आपको अंधे के रूप में जन्म लेना पड़ा l "
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