गणेश जी की शर्त ---- महाभारत की कथा व्यास जी के मानस -पटल पर अंकित हो चुकी थी l उन्होंने ब्रह्मा जी से निवेदन किया कि --" भगवान ! मुझे इस बात की चिंता है कि इस इस महान ग्रन्थ को लिपिबद्ध कौन करे ? " ब्रह्मा जी ने कहा --- " तात ! तुम गणेश जी को प्रसन्न करो l वे ही तुम्हारे ग्रन्थ को लिखने में समर्थ होंगे l " महर्षि व्यास ने गणेश जी का ध्यान किया और उनसे प्रार्थना की --- " हे गणेश ! एक महान ग्रन्थ की रचना मेरे मस्तिष्क में हुई है l आप उसे लिपिबद्ध करने की कृपा करें l " गणेश जी ने व्यास जी की प्रार्थना स्वीकार तो की , लेकिन बोले ---" आपका ग्रन्थ लिखने को मैं तैयार हूँ , लेकिन मेरी एक शर्त है कि ---जब मैं लिखना शुरू करूँ फिर मेरी लेखनी जरा भी रुकने न पाए l अगर आप लिखाते -लिखाते जरा भी रुक गए तो मेरी लेखनी भी रुक जाएगी और फिर आगे नहीं चलेगी l " व्यास जी ने कहा --- " आपकी शर्त मुझे मंजूर है , लेकिन मेरी भी एक शर्त है , वह यह है कि आप जब भी लिखें , तब हर श्लोक का अर्थ ठीक तरह से समझ लें , तभी लिखें l " गणेश जी ने कहा --- 'तथास्तु ! ' अब व्यासजी और गणेश जी आमने -सामने बैठ गए l व्यास जी बोलते जाते , गणेश जी लिखते जाते l गणेश जी की गति बहुत तेज थी , इस कारण व्यास जी श्लोकों को जरा जटिल बना देते , जब तक गणेशजी उन्हें समझते तब तक वे मन ही मन और श्लोकों की रचना कर लेते l इस तरह गणेश जी की अथक लेखनी से यह महान ग्रन्थ लिपिबद्ध हुआ l व्यास जी ने महाभारत की यह कथा सबसे पहले अपने पुत्र शुकदेव जी को कंठस्थ कराई और बाद में अपने दूसरे शिष्यों को l मानव जाति में महाभारत की कथा का प्रसार व्यास जी के प्रमुख शिष्य महर्षि वैशम्पायन के द्वारा हुआ l उन्होंने महाराज परीक्षित के पुत्र जनमेजय के नाग यज्ञ के अवसर पर व्यासजी की आज्ञा से महाभारत की कथा सुनाई l
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