श्रीराम और रावण में बुनियादी अंतर केवल अहंकार को लेकर था l भगवान श्रीराम अहंकार शून्य थे , जबकि रावण के अहंकार की कोई सीमा नहीं थी l अहंकार का मतलब है -- ' मैं ' को प्राथमिकता देना और यही ' मैं ' रावण के व्यक्तित्व का आधार था l रावण ने यमलोक पर आक्रमण किया l कालदंड भी कब्जे में कर लिया l भयवश यम भी अद्रश्य हो गए l नवग्रह भी उसके कब्जे में आ गए , तप व पुण्य का बल उसका साथ दे रहा था लेकिन कोई कितना ही बलशाली क्यों न हो , अहंकार कितना ही बड़ा क्यों न हो , काल उसे मिटा देता है l पानी का बुलबुला कितना ही बड़ा हो, फूट जाता है l अहंकारी संवेदनहीन होता है l संसार में जहाँ भी अत्याचार , अन्याय , हिंसा , शोषण , उत्पीड़न है उसके लिए कोई न कोई अहंकारी ही उत्तरदायी है l अहंकारी न तो स्वयं चैन से जीता है और न ही दूसरों को चैन से जीने देता है l
No comments:
Post a Comment