पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी लिखते हैं ---- 'आसक्ति ही सब दुःखों की जननी है , यहाँ तक कि वही पुन: जन्म लेने को बाध्य करती है l यह आसक्ति ही मनुष्य को तरह -तरह से दुःख देती है और बंधनों से बाँधती है l इसलिए मनुष्य को चाहिए कि कुल , वंश , पद तो क्या इस शरीर से भी आसक्ति न करे l मृत्यु के बाद भी इस शरीर से मोह नहीं छूटता l अनासक्त रहकर कर्तव्यपालन करे l " एक कथा है ------- एक सेठ जी थे l बहुत धर्मात्मा थे लेकिन उन्हें अपनी संपदा से और पुत्र से बहुत मोह था l संतों का उनके यहाँ सत्संग होता था l संतों ने उन्हें समझाया कि अति का मोह अच्छा नहीं होता लेकिन सेठजी विवश थे l उन्हें मालूम था कि इस मोह के कारण और कुछ दुष्कर्मों के परिणामस्वरुप उन्हें अगले जन्म में बन्दर का रूप धारण करना पड़ेगा l उन्होंने अपने प्रिय पुत्र से कहा --- " देखो , मृत्यु के बाद मैं बन्दर के रूप में जन्म लूँगा और जंगल में एक बरगद के पेड़ पर बैठा रहूँगा l तुम मुझे गोली से मार देना तो मेरी मुक्ति हो जाएगी l " पिता की मृत्यु के बाद पुत्र एक पंडित को लेकर जंगल पहुंचा तो देखा कि एक एक बंदरिया अपने बच्चे को सीने से चिपकाए बैठी हुई है l उसने बंदूक चलाई तो बंदरिया तो डर के कारण बेहोश हो गई और बच्चा कूदकर ऊँची डाल पर चढ़ गया l बहुत प्रयत्न करने के बाद भी वह उसे पा नहीं सका l साथ में जो पंडित जी थे उन्होंने कहा --- " इस सेठ को अब इस बन्दर शरीर से मोह हो गया है , चलो अब वापस चलो , अब वह मरना ही नहीं चाहता l शरीर चाहे बन्दर का हो या कीड़े का , कोई मरना नहीं चाहता l ये मोह है , जो मरकर भी नहीं छूटता l "
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