इस धरती पर असुरता का अंत कर देवत्व की अभिवृद्धि के लिए भगवान ने समय -समय पर अवतार लिए l ऋषियों की हड्डियों का पर्वत देखकर भगवान राम ने हाथ उठाकर पृथ्वी को राक्षसों से विहीन करने की प्रतिज्ञा की थी l ऋषि विश्वामित्र के यज्ञ में विध्न फ़ैलाने वाले ताड़का , सुबाहु , मारीचि आदि असुरों का वध किया l छोटे भाई सुग्रीव के साथ अन्याय करने वाले बालि का अंत किया l ऋषियों को त्रास देने वाले खर -दूषण का दमन किया और अंत में अधर्मी , अत्याचारी सत्ताधीश रावण का अंत किया l असुरता का अंत इसलिए भी आवश्यक होता है क्योंकि ये असुर स्वयं तो अत्याचार करते ही हैं , इसके साथ वे जनता के सामने अधार्मिकता की विजय के उदाहरण प्रस्तुत कर उसे भी कुमार्ग पर चलने का लालच उत्पन्न करते हैं l अच्छाई की अपेक्षा बुराई का मार्ग सरल है , इसलिए असुरता का साम्राज्य तेजी से फैलता है l रावण का अंत हो गया , लेकिन द्वापर युग में पुन: असुरता प्रबल हो गई l तब भगवान श्रीकृष्ण ने अवतार लेकर अनीति बरतने वाले त्रनासुर , अघासुर , बकासुर , पूतना , कालिया नाग आदि का अपनी बाल्यावस्था में ही अंत किया फिर बड़े होने पर अत्याचारी अन्यायी शासक कंस का अंत किया l अपनी कुशल नीति से अत्याचारी और अहंकारी शासकों जरासंध , शिशुपाल आदि का अंत किया और अंत में अनीति और अत्याचार , अधर्म का अंत करने के लिए महाभारत में अर्जुन के सारथि बने l अधर्म का अंत और धर्म की स्थापना हुई l लेकिन समस्या समाप्त नहीं हुई , कलियुग में सम्पूर्ण धरती पर ही असुरता का बोलबाला है l छल , कपट , षड्यंत्र , अनीति , भ्रष्टाचार , स्वार्थ , लालच , महत्वाकांक्षा जैसी बुराइयों से कोई परिवार , कोई भी संस्था , यहाँ तक कि संसार में कोई भी अछूता नहीं बचा है l संभवतः ये धरती टिकी रहे , उसके लिए जितने अच्छे , सच्चे लोगों की जरुरत होगी , केवल मात्र उतने ही अच्छे -सच्चे धरती पर होंगे l समस्या ये है कि जब असुरता का साम्राज्य इतना व्यापक है तो उसका अंत कैसे हो ? यह समस्या ईश्वर के भी सामने है कि कहाँ तक अवतार लें ? ये पृथ्वीवासी तो सुधरते ही नहीं , असुरता का अंत होना तो दूर , संख्या बढ़ती ही जाती है l असुरों के नाम पर कुछ का अंत कर भी दिया तो क्या ? रावण एक विचार है , उस विचार का अंत होना जरुरी है l लोगों के विचार सकारात्मक हों , चेतना का परिष्कार हो , इसी कार्य के लिए दैवी शक्तियों ने पं . श्रीराम शर्मा आचार्य जी को धरती पर भेजा l उन्होंने बताया कि गायत्री मन्त्र में ही वह शक्ति है जो दुर्बुद्धि का नाश करती है और सद्बुद्धि को जाग्रत करती है l जब विचार अच्छे होंगे , तो कार्य भी सकारात्मक होंगे l इसके साथ जरुरी है कि अपने आचरण से शिक्षा दो , पहले स्वयं सुधरो , फिर दूसरों को सुधारो l 'अपना सुधार ही संसार की सबसे बड़ी सेवा है l '
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