पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी के विचार और उनके द्वारा लिखे गए ' प्रेरणाप्रद द्रष्टान्त ' हमें जीवन जीने की कला सिखाते हैं l आज की परिस्थितियों में जब लोग बड़ी जल्दी निराश होकर आत्महत्या कर लेते हैं , ऐसे में आचार्य जी के विचार मनुष्यों को सकारात्मक सोच प्रदान करते हैं l आचार्य जी लिखते हैं ------- -----" जो उपलब्ध है उसे कम या घटिया मानकर अनेक लोग दुःखी रहते हैं l यदि हम इन लालसाओं पर नियंत्रण कर लें और अपना स्वाभाव संतोषी बना लें तो शांतिपूर्वक रह सकते हैं l अपने से अधिक सुखी , अधिक साधन संपन्न लोगों के साथ यदि अपनी तुलना की जाये तो प्रतीत होगा कि सारा अभाव और दारिद्रय हमारे ही हिस्से में आया है l परन्तु यदि उन असंख्य दीन -हीन , पीड़ित , परेशान लोगों के साथ अपनी तुलना करें तो अपने सौभाग्य की सराहना करने को जी चाहेगा l l केवल मात्र द्रष्टिकोण के परिवर्तन से सुख -शांति से जीवन जिया जा सकता है l " एक कथा है ----- एक अँधा भीख माँगा करता था l जो पैसे मिल जाते उसी से अपनी गुजर -बसर करता l एक दिन एक व्यक्ति ने उसके हाथ में पांच रूपये का नोट रखा l उसने उस कागज को टटोला और समझा कि किसी ने ठिठोली की है l उसका मन उदास हो गया और उसने खिन्न मन से उसे जमीन पर फेंक दिया l एक सज्जन ने उसे वह नोट उठाकर दिया और कहा यह पांच रूपये का नोट है , तब वह प्रसन्न हुआ और उससे अपनी आवश्यकता पूरी की l आचार्य जी लिखते हैं ---- " ज्ञान चक्षुओं के अभाव में हम भी परमात्मा की अपार देन को देख और समझ नहीं पाते हैं और सदा यही कहते रहते हैं कि हमारे पास कुछ नहीं है , हम साधनहीन हैं , पर यदि हम जो कुछ हमें नहीं मिला है , उसकी शिकायत करना छोड़कर , जो मिला है , उसी की महत्ता समझें तो मालूम होगा कि जो कुछ मिला हुआ है वह अद्भुत है l "
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