सुकरात महान दार्शनिक थे , उन्होंने अपने आचरण द्वारा ही शिष्यों को ज्ञान दिया l उन्होंने अपना स्वयं के उदाहरण से शिष्यों को समझाया कि ज्योतिष का आकृति विज्ञानं हमारे चेहरे की आकृति को देखकर जो दुर्गुण बताता है , उन दुर्गुणों पर विवेक के जागरण से विजय संभव है , सद्बुद्धि के जागरण से गुण , कर्म और स्वभाव में आमूलचूल परिवर्तन कर उन दुर्गुणों पर अंकुश रखा जा सकता है l -------- एक बार सुकरात अपने शिष्यों के साथ गंभीर विषयों पर चर्चा कर रहे थे , उस समय एक ज्योतिषी आया और उसने कहा मैं किसी के चेहरे की आकृति देखकर उस व्यक्ति के स्वाभाव और चरित्र के बारे में बता सकता हूँ l आप मुझे एक अवसर प्रदान करो l " सुकरात स्वयं कहते थे कि वे बदसूरत हैं , उन्होंने अपने शिष्यों से कहा --- " तुम सभी इस ज्योतिषी से मेरी आकृति का सत्य सुन लो l " कुछ गंभीर होकर वे कहने लगे --" अपनी आकृति का रहस्य बाद में मैं तुम्हे बताऊंगा l " सुकरात ने ज्योतिषी को अनुमति दी कि वह उनकी चेहरे की आकृति का परीक्षण करे l ज्योतिषी कहने लगा ---- " इनके नथुनों की बनावट बता रही है कि इस व्यक्ति में क्रोध की भावना प्रबल है l इसके माथे और सिर की आकृति के कारण यह निश्चित रूप से लालची होगा l " अपने गुरु के बारे में अपमानजनक टिप्पणी सुनकर शिष्य बहुत नाराज होने लगे l सुकरात ने शिष्यों को रोककर अपनी बात आगे बढ़ाने को कहा l ज्योतिषी कहने लगा --- "इसकी ठोड़ी की रचना कहती है कि यह सनकी है l इसके होठों और दांत की बनावट के अनुसार यह व्यक्ति सदैव देशद्रोह करने के लिए प्रेरित रहता है l " सुकरात ने ज्योतिष विद्या के आधार पर स्वयं के संबंध में लगाये गए तथ्यों को बड़े ध्यानपूर्वक सुना और अंत में ज्योतिषी की प्रशंसा कर उसे इनाम देकर विदा किया l सुकरात के ज्योतिषी के प्रति इस व्यवहार को देखकर व्शिश्य भौंचक्के रह गए l शिष्यों की उलझन को सुलझाते हुए सुकरात ने कहा ---- " यथार्थ को छिपाना ठीक नहीं l ज्योतिषी ने मेरे मेरे संबंध में जो कुछ बताया , वे सभी दुर्गुण मुझमे हैं l यही मेरी स्थूल आकृति का सत्य है , किन्तु उस ज्योतिषी से एक भूल अवश्य हुई , वह है कि उसने मेरी आत्मिक ज्ञान की शक्ति पर जरा भी गौर नहीं किया l उस ज्ञान की मदद से मैं अपने सद् विवेक को जाग्रत कर अपने समस्त दुर्गुणों पर अंकुश लगाए रखता हूँ l " सद्बुद्धि ही सब कार्यों में प्रकाशित है l सद्बुद्धि की जरुरत हर युग में है l गायत्री मन्त्र के माध्यम से हम ईश्वर से सद्बुद्धि के लिए प्रार्थना कर सद्बुद्धि और सद विवेक को जाग्रत कर सुख -चैन का जीवन जी सकते हैं l
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