विज्ञान के चमत्कारों ने इस युग को वैज्ञानिक युग का दर्जा दे दिया लेकिन इससे भी अधिक उन्नत दशा में हम महाभारत काल में थे l यह जरुरी है कि हम अपने प्राचीन ज्ञान -विज्ञान को बार -बार याद करें l अतीत का गौरव किसी भी देश के नागरिकों के स्वाभिमान को जगाने और उसे मजबूत बनाने में सहायक होता है l आज वैज्ञानिक जिस ब्लैक होल की बात करते हैं , हमारे महान ऋषि उससे पहले से ही परिचित थे l ------- महाभारत के वन पर्व के अंतर्गत तीर्थयात्रा पर्व के एक सौ बत्तीसवें अध्याय में कहोड़ मुनि और अष्टावक्र की कथा आती है l शास्त्रार्थ में पराजित मुनि कहोड़ को जल समाधि दे दी गई थी l बाद में मुनि के पुत्र अष्टावक्र ने अपने पिता के अपराधी पण्डित वन्दी को पराजित कर उसे भी समुद्र में डुबोने की सजा दी , तो वरुण पुत्र वन्दी ने क्षमायाचना सहित कहा कि पण्डितों को जान से मारने का मेरा तनिक भी इरादा नहीं है l वस्तुतः मेरे पिता वरुण के राज्य में विशाल यज्ञ हो रहा है l यहाँ से विद्वान् पण्डितों को चुन -चुनकर मैं वहीँ भेज रहा था l शास्त्रार्थ में में हराकर जल में डुबोना तो एक निमित्त मात्र था l अब यज्ञ समाप्ति पर है और सभी ब्राह्मण लौटने वाले हैं l कुछ समय पश्चात् सभी ऋषिगण सामने से आते दिखाई पड़े , इनमे ऋषि कहोड़ भी थे l यह समुद्र में ब्लैक होल ही था , जिसमे से ऋषियों को वरुण लोक भेजा गया l उस समय के ऋषि कोई रहस्यमय विद्या अवश्य जानते थे , जिसकी मदद से वे पृथ्वी लोक पर वापस आ गए l उस समय हमारा ज्ञान -विज्ञानं चरम उत्कर्ष पर था l युगों की गुलामी , आपसी फूट , जाति और धर्म के नाम पर मतभेद , विदेशी आक्रमण में उलझकर लोग इस वैभव को भूल गए l इस वैभव को पुन: प्राप्त करने के लिए परस्पर एकता और स्वाभिमान जरुरी है l
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