' लालच बुरी बला '------- पुराण की एक कथा है ----- महापंडित कौत्स स्नान कर एक ऊँची शिला पर बैठकर सूर्य को अर्घ्य दान दे रहे थे l एक घड़ियाल उन्हें बहुत देर से ताक रहा था , पर वे सावधान थे , अत: पानी से हटकर बैठे थे l यमुना की तलहटी से रत्नों की राशि उछलकर उस घड़ियाल ने कौत्स के आसपास बिखेर दी और स्वयं पानी में छिप गया l कौत्स ने जब देखा कि रत्न बिखरे हुए हैं , कोई देख नहीं रहा , तो उन्होंने जल्दी -जल्दी बीनकर उन्हें अपने उत्तरीय में बाँध लिया l घड़ियाल को मौका मिल गया l उसने सिर ऊपर कर कहा --- " आचार्य ! यह तो एक तुच्छ भेंट थी l आप मुझे त्रिवेणी तक पहुंचा दें l मैंने वहां का मार्ग नहीं देखा l आपको पीठ पर बैठा लेता हूँ l मैं आपको वहां अनगिनत रत्न दूंगा l " महापंडित कौत्स को लालच आ गया और उन्होंने प्रसन्नतापूर्वक वह प्रस्ताव स्वीकार कर लिया l अभी वह घड़ियाल बीच धार में ही था कि हँस पड़ा l कौत्स ने पूछा ---- "ग्राहराज ! आप हँसे क्यों ? " ग्राह बोला ---- " पंडितप्रवर ! आप जीवनभर दूसरों को उपदेश देते रहे कि लालच नहीं करना चाहिए , पर स्वयं उसका पालन नहीं कर पाए l आज आपका सर्वनाश सुनिश्चित है l " यह कहकर उसने उन्हें उछाला और उदरस्थ कर लिया l
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