मांसाहार का संबंध किसी जाति या वर्ग से नहीं है , जिसे भी स्वाद लग जाये , वह मांसाहार करता है l इसका सबसे बड़ा दोष यह है कि जब सब चीजों में मिलावट है , बेईमानी है तब आर्थिक या किसी भी प्रकार का लाभ कमाने के लिए कोई आपको क्या खिला दे और उसका क्या असर हो यह कोई नहीं जानता ? पुराण की एक कथा है ----- अगस्त्य मुनि की पत्नी लोपामुद्रा एक राजकन्या थी लेकिन विवाह के बाद वन में सादगी का जीवन था l एक बार लोपामुद्रा की इच्छा हुई कि सुख -साधन हों , इसके लिए उन्होंने पति से धन की याचना की l पत्नी की इच्छा पूरी करने के लिए अगस्त्य मुनि अनेक राजाओं के पास गए और धन की याचना की , लेकिन यह भी कहा कि दान से प्रजा और जरूरतमंद को तकलीफ नहीं होनी चाहिए l उन दिनों में न्यायोचित ढंग से राज -काज होता था और राजा से दान लेने का अर्थ था प्रजा को कष्ट पहुंचना l इसलिए यह निश्चित किया कि किसी असुर से धन लिया जाये . जो जनता को पीड़ित कर के , अन्यायपूर्वक धन जमा करते हैं , उनके पास अपार संपदा होती है l अत: अगस्त्य मुनि इलवल नामक एक अत्याचारी असुर राजा के पास गए ताकि आवश्यक धन प्राप्त हो सके l इलवल और वातापी दोनों असुर भाई -भाई थे l ब्राह्मणों से उन्हें बड़ी नफरत थी l उन दिनों भी ब्राह्मण लोग मांस खाते थे l इलवल चालाक था , ब्राह्मणों का स्वागत भी हो जाए और उनका अंत भी l इसके लिए इलवल ब्राह्मणों को भोजन का न्योता देता और अपने भाई वातापी को अपनी माया से बकरा बनाकर उसका मांस ब्राह्मण मेहमानों को खिला देता l ब्राह्मणों के खा चुकने के बाद इलवल पुकारता " वातापी ! आ जाओ l " इलवल को यह शक्ति प्राप्त थी जिससे वातापी ब्राह्मणों का पेट चीरकर हँसते हुए बाहर निकल आता l इस प्रकार कितने ही ब्राह्मणों को इन असुरों ने मार डाला l अगस्त्य मुनि के आने पर दोनों असुर भाई बहुत खुश हुए कि अच्छा मोटा ताजा शिकार फंसा है l उन्होंने ऋषि का बहुत स्वागत किया और हमेशा की तरह वातापी को बकरा बना कर उसका मांस अगस्त्य मुनि को खिला दिया l वे सोच रहे थे कि मुनि अब थोड़ी देर के मेहमान हैं l अगस्त्य मुनि जब भोजन कर चुके तो इलवल ने पुकारा ---- " वातापी आओ भाई , जल्दी आओ l " यह सुन अगस्त्य मुनि बोल उठे --- "" वातापी ! अब आने की जल्दी न कर l संसार की भलाई के लिए तू हजम कर लिया गया है l " यह कहते हुए मुनि ने जोर की डकार ली न और अपने पेट पर हाथ फेरा l इल्वल घबरा कर जोर -जोर से वातापी को बुलाने लगा l अगस्त्य मुनि बोले अब क्यों अपना गला फाड़ रहे हो , वातापी तो कभी का हजम हो चुका l इलवल ने अपने कृत्यों के लिए क्षमा मांगी और मुनि को बहुत सा धन देकर विदा किया l ---यह कथा एक संकेत है कि वे तो मुनि थे जो ऐसा मांस अपने तप की शक्ति से हजम कर गए लेकिन अब ऐसा तपस्वी कोई नहीं है इसलिए ये मांसाहार शरीर से विभिन्न लाइलाज बीमारियों रूपी वातापी बनकर बाहर निकलता है l जागरूकता जरुरी जरुरी है l
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