देवता और असुरों के संबंध में पुराण में अनेक कथाएं हैं l कहते हैं असुर बहुत तपस्वी और अहंकारी होते हैं l इनके पास तपस्या का अथाह बल होता है किन्तु ये अपने इस बल को अहंकार के प्रदर्शन में लगा देते हैं और अपनी शक्ति का दुरूपयोग करते हैं l लेकिन सभी असुर एक जैसे नहीं होते , कई भगवान के बड़े भक्त होते हैं जैसे भक्त प्रह्लाद l ऐसे ही एक और असुर भक्त हुआ है जिसका नाम था ---- गयासुर l यह विलक्षण भक्त था , भक्ति और तपस्या का उसमें अनोखा संगम था l उसने तपस्या से प्राप्त ऊर्जा का दुरूपयोग नहीं किया l इस उर्जा को उसने अपने आंतरिक परिष्कार में लगाया l जब भी कोई असुर कठिन तपस्या करता है , ईश्वर की भक्ति करता है तो उससे सबसे ज्यादा भय स्वर्ग के राजा इंद्र को होता है l उन्हें अपने सिंहासन को खोने का भय सताता है l इसलिए उन्होंने देवगुरु ब्रहस्पति के साथ एक षड्यंत्र की रचना की , जिसके अंतर्गत एक ऐसा यज्ञ करने की योजना बनाई जो धरती पर संपन्न नहीं हो सकता था l इसके लिए उन्होंने निर्णय किया कि गयासुर से कहा जाए कि वह अपने शरीर का इतना विस्तार कर दे कि उसके ऊपर यज्ञ संपन्न किया जा सके l इंद्र और ब्रहस्पति दोनों गयासुर के पास गए और उससे कहा --- " स्रष्टि के कल्याण के लिए परमात्मा ने हमें एक यज्ञ करने का आदेश दिया है और वह यज्ञ केवल तुम्हारे शरीर के ऊपर ही संपन्न किया जा सकता है क्योंकि तुम भगवान के भक्त हो और तुम में असीम धैर्य और सहनशीलता है l " गयासुर ने कहा --- " यदि भगवान और स्रष्टि के निमित्त मेरी देह जरा सी भी उपयोगी है तो अवश्य ही आप इसका उपयोग करें और वह यज्ञ मेरी देह के ऊपर संपन्न करें l " निश्चित मुहूर्त में गयासुर ने अपनी देह का विस्तार किया और उसके ऊपर देवताओं का यज्ञ दीर्घकाल तक चला l यज्ञ की अग्नि उसकी देह को जलाने -गलाने लगी , पीड़ा से गयासुर का शरीर टूटने लगा l लेकिन वह इस पीड़ा को भगवान की कृपा मानकर सहन करता रहा और इस असीम कष्ट भगवान का नाम स्मरण करता रहा l देवताओं का यज्ञ समाप्त हुआ , इसके साथ ही गयासुर की देह भी मृतप्राय हो चुकी थी l देवताओं का षड्यंत्र सफल हुआ l अंत में देवताओं ने उससे वरदान मांगने को कहा तो गयासुर ने कहा --- " आप मुझे कुछ देना चाहते हैं तो इतनी कृपा करें कि जहाँ तक मेरी देह है , पृथ्वी के उस स्थान पर यदि मानव अपने पितरों का श्रद्धापूर्वक विधिवत पिंडदान करे तो उनके पितरों को अवश्य मुक्ति मिले l " देवताओं ने कहा ---- " गयासुर ! तुम धन्य हो ! तुम्हारी देह वाले इस स्थान को ' गया ' नाम से प्रसिद्धि मिलेगी और इस गया जी में पिंडदान करने वालों के पितर अवश्य ही मुक्त होंगे l "
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