एक बार एक व्यक्ति शंकराचार्य जी से मिलने गया और बोला ---- " भगवान ! मैं अपने क्रोध से बहुत परेशान हूँ l यह कहीं भी आ जाता है l लाख कोशिश करूँ छूटता ही नहीं है l आप इससे छूटने का कोई मार्ग बताइए ? " शंकराचार्य बोले ---- " थोड़ी देर में आना , तब उपाय बता सकूँगा l अभी मेरे हाथों को मेरे कमण्डलु ने पकड़ रखा है l यह कमण्डलु मेरा हाथ छोड़े तो मैं कुछ और करूँ ? " वह आदमी आश्चर्य मिश्रित स्वर में बोला --- " क्यों मजाक करते हैं भगवन ! कमण्डलु कैसे आपको पकड़ेगा ? आपने ही तो इसे पकड़ रखा है l " शंकराचार्य जी बोले ---- "वत्स ! ऐसे ही क्रोध ने तुमको नहीं पकड़ा , तुमने ही इसे पकड़ रखा है l तुम मालिक हो अपने मन के , फिर गुलाम की तरह व्यवहार क्यों कर रहे हो ? " यह सुनते ही उस व्यक्ति की आँखें खुल गईं और उसकी सोच और उसका जीवन सदा के लिए बदल गया l
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