21 May 2023

WISDOM-----

   पं. श्रीराम  शर्मा  आचार्य जी  लिखते  हैं  ----' भक्ति  भावना  अन्दर  तक  ही  सिमित  न  रहे  ,  वह  परमार्थ  हेतु  सत्कर्मों  के  रूप  में   अभिव्यक्त  हो    तो  ही  सार्थक  है  l  वृत्ति  कृपण  जैसी  हो   तो  कुबेर  का  खजाना  भी    व्यर्थ   हैं  l  उदार  के  लिए  तो  प्रतिकूल  परिस्थिति  में  भी  परमार्थ  की  आकुलता  रहती  है  l  --------  भगवान  श्रीकृष्ण  एक  दिन  कर्ण  की  उदारता  की  चर्चा  कर  रहे  थे  l  अर्जुन  ने  कहा ---- " धर्मराज  युधिष्ठिर  से  बढ़कर  वह  क्या  उदार  होगा  ? "  कृष्ण  ने  कहा --- " अच्छा  परीक्षा  करेंगे  l "  एक  दिन  वे  ब्राह्मण  का  वेश  बनाकर   युधिष्ठिर  के  पास  आए  और  कहा  ---"  एक  आवश्यक  यज्ञ   के  लिए   एक  मन  सूखे  चन्दन  की  आवश्यकता  है  l '  युधिष्ठिर  ने  अपने  नौकर  को  चंदन  लाने  भेजा  ,  लेकिन  तेज  वर्षा  के  कारण   सब  चंदन  की  लकड़ी  गीली  हो  गई  थीं  l  बड़ी  कठिनाई  से  बहुत  थोड़ा  सूखा    चंदन    मिल  सका  ,  l  युधिष्ठिर  ने   अधिक  न  दे  पाने  के  लिए   अपनी  असमर्थता  व्यक्त  की  l    अब  वे  कर्ण  के  पास  पहुंचे   और  वही  एक  मन  सूखे  चंदन  की  मांग  की  l  वह  जानता  था  कि  वर्षा  में  सूखा  चंदन  नहीं  मिलेगा   इसलिए  उसने  अपने  घर  के  किवाड़ - चौखट   निकालकर  फाड़  डाले   और  ब्राह्मण  को  सूखा  चंदन  दे  दिया  l 

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