श्रीमद् भगवद्गीता में भगवान श्रीकृष्ण अर्जुन को अपनी विभूतियों का विवरण देते हैं l श्रीकृष्ण मृत्यु के अधिपति ' यम ' को अपना स्वरुप कहते हैं और इन्हें शासन करने वालों में श्रेष्ठतम मानते हैं l भगवान श्रीकृष्ण अन्तर्यामी थे , किसी भी शासन प्रणाली का भूत , वर्तमान , भविष्य उनसे छिपा नहीं था , उनकी दिव्य द्रष्टि सबके गुण -दोष देख रही थी l त्रेतायुग में लंका का राजा रावण था , उसका शासन का यह तरीका था कि वह ऋषि -मुनियों पर बहुत अत्याचार करता था , उनके यज्ञ , हवन पूजन को नष्ट कर देता , उनका जीवन मुश्किल कर दिया था l शनि , राहू ,केतु सबको उसने बंदी बना लिया था l रावण बहुत बड़ा तपस्वी था , शिवजी को उसने प्रसन्न तो किया , इसके फलस्वरूप उसे सोने की लंका मिली , लेकिन भगवान की कृपा नहीं मिली l वह अत्याचारी , अहंकारी था , उसके अहंकार की अति थी -सीता -हरण l इस कारण एक लाख पूत , सवा लाख नाती समेत समाप्त हो गया l द्वापरयुग में भगवान श्रीकृष्ण द्वारकाधीश थे l वहां धन -वैभव बहुत था , लोग भोग - विलास में डूब गए l अति का नशा करने के कारण और गांधारी के शाप के कारण वे सब आपस में ही लड़ मरे और द्वारका समुद्र में डूब गई l भगवान कहते हैं ---सब जन्म मुझी से पाते हैं , फिर लौट मुझ में आते हैं l उन्हें तो कलियुग का और आने वाले हजारों , लाखों वर्षों का ज्ञान था l उन्हें पता था कि काम , क्रोध , लोभ , मोह , तृष्णा , महत्वाकांक्षा में लिप्त संसार में कभी स्वर्ण युग होगा , कभी अत्याचार , अन्याय भी होगा इसलिए उन्होंने पृथ्वी के किसी भी शासन को अच्छा नहीं बताया l भगवान ने गीता में मृत्यु के देवता यम के शासन को सर्वश्रेष्ठ बताया है l यम के शासन में कोई खोट नहीं , कोई शिथिलता नहीं l यह सबके लिए समान है l यम के शासन में अमीर , गरीब , छोटे -बढ़े , ऊँच -नीच , शहरी -ग्रामीण , राजा -प्रजा , सुन्दर -कुरूप , धर्म , जाति किसी भी आधार पर कोई भेदभाव नहीं है l जब जिसकी आ गई उसे जाना पड़ता है , फिर संसार की कोई ताकत उसे एक पल के लिए भी नहीं रोक सकती l यम के शासन में कानून सबके लिए समान है , कोई भेदभाव नहीं l वहां कोई चापलूसी , विशेष सुविधा नहीं चलती इसलिए भगवान ने यमदेव को अपना स्वरुप बताया है l
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