ऋषि का वचन है कि ----- ' जब आप अति क्रोध में , आवेश में हों या अत्यधिक अपमान हुआ हो , तो ऐसी स्थिति में कभी भी कोई महत्वपूर्ण निर्णय नहीं लेना चाहिए l जब मन: स्थिति सामान्य हो जाये तो उस विषय पर चिन्तन ,मनन कर और अपने निर्णय से मिलने वाले परिणामों पर संतुलित मन से विचार कर ही कोई महत्वपूर्ण कदम उठाना चाहिए , बड़ा निर्णय लेना चाहिए l ' ------- गंगा तट पर एक ऋषि अपनी पत्नी के साथ रहते थे l उनका एक पुत्र था जो ज्ञानी तो था , साथ ही बहुत चिन्तन -मनन भी करता था l एक बार ऋषि पति -पत्नी में किसी बात पर विवाद हुआ तो ऋषि को बहुत क्रोध आया और उन्हें अपना अपमान महसूस हुआ l क्रोध में आकर उन्होंने अपने पुत्र को माँ का सिर काटने की आज्ञा दी और स्वयं जंगल चले गए l पुत्र विचारशील था वह सोचने लगा कि पिता ने अति क्रोध में ऐसी कथीर आज्ञा दी है न, क्या जन्म देने वाली माँ को मारना उचित होगा ? या पिता की आज्ञा की अवहेलना करना उचित होगा ? वह ऐसे जघन्य कार्य और उसके परिणामों के बारे में सोच -विचार में डूब गया l तभी उसके पिता क्रोध शांत हो जाने पर दौड़ते हुए आए और पत्नी के देखकर उनका मन शांत हुआ l उन्होंने अपने पुत्र को ह्रदय से लगा लिया l उन्होंने कहा --क्रोध में मैं अँधा हो गया था , मेरी बुद्धि का नाश हो गया था l तुमने मुझे एक भयानक पापकर्म से बचा लिया l
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