लघु कथा ---- एक नगर में एक कुख्यात चोर रहा करता था l उसने अपने पुत्र को भी चोरी करना सिखा दिया था l मरते समय उसने अपने पुत्र को शिक्षा दी कि -- ' बेटा ! तू चाहे जो कुछ करना , परन्तु कभी किसी संत से सत्संग का हिस्सा न बनना l " एक बार वह लड़का रात में चोरी करने निकला तो मार्ग में एक संत का आश्रम पड़ा l उसे सुनाई दिया कि संत अपने शिष्यों से कह रहे थे ---- " इस संसार में कर्म की गति है l हर व्यक्ति को अपने शुभ और अशुभ कर्मों का फल भुगतना पड़ता है l " बस , इतना सा वाक्य उसके कान में पड़ने की देरी थी कि उसके मन में उथल -पुथल मच गई l चोरी करना भूलकर वह संत के पास पहुंचा और उनसे पूछने लगा कि क्या उसे भी उसके दुष्कर्मों का फल भुगतना पड़ेगा ? " संत बोले ---" निश्चित रूप से l " संत की बात सुनकर उसे अपनी जिन्दगी पर बहुत पश्चाताप हुआ और अपने कुकर्मों का प्रायश्चित करने हेतु उसने साधक का जीवन अपना लिया l क्षण भर के सत्संग से उसका पूरा जीवन बदल गया l
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