संवेदना -करुणा -मानव धर्म ------ पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी लिखते हैं --- " संवेदना होश का बोध का दूसरा नाम है l जिसके ह्रदय में संवेदना है , आसपास का दुःख उसे बेचैन करता है l विकास की अंतिम सीढ़ी संवेदना , करुणा का विस्तार है और यही मानव धर्म है l " --------- एक बार युद्ध के मैदान में दो घायल सैनिक पास -पास पड़े थे l एक सिपाही था दूसरा उसका अफसर l अफसर बुरी तरह घायल हो चुका था , उसका प्यास से गला सूख रहा था l उसने अपनी कमर से बंधी पानी की बोतल निकाली और प्रयत्न कर के उसे पीने ही जा रहा था कि उसकी द्रष्टि अपने पास उससे भी अधिक घायल हुए सिपाही पर पड़ी l वह मरणासन्न था , मुंह से बोल भी नहीं फूट रहे थे , लेकिन टकटकी लगाकर वह सिपाही उसके पानी की बोतल की ओर देख रहा था l उसकी आँखों में याचना थी l वह जीवन के अंतिम क्षणों में पानी की एक बूंद चाहता था l अफसर में इंसानियत जागी l उसके अंदर के इनसान ने कहा कि मुझसे ज्यादा पानी की जरुरत इस सिपाही को है l वह घिसटता हुआ सिपाही के पास पहुंचा और पानी की बोतल किसी तरह घायल सिपाही के मुंह से लगा दी l सिपाही ने पानी पिया , उसे तृप्ति हुई , उसने अपनी आधी बंद पलकें पूरी खोल दीं l आचार्य श्री कहते हैं यही मानव धर्म है l दूसरों के हित के लिए कार्य करने से ही जीवन सार्थक और सफल बनता है l l " आज के युग की सबसे बड़ी विडंबना है कि मनुष्य संवेदनहीन हो गया है l बिना वजह के युद्ध , साम्प्रदायिक दंगे और विभिन्न अमानवीय तरीकों से नकारात्मकता फ़ैलाने के कारण मानवता और सम्पूर्ण प्रकृति ही घायल है ! ' समरथ को नहीं दोष गुंसाई ' l संसार को नवजीवन कौन दे ?
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