लघु कथा ---- एक राजा वेश बदलकर नगर में यह जानने के लिए अक्सर निकलता था कि उसकी प्रजा सुखी है या नहीं l एक दिन वह एक ग्रामीण के वेश में था l उसने देखा कि एक बहुत बूढ़ा आदमी एक बाग़ के किनारे काजू का पेड़ लगा रहा है l राजा रुक गया l उसने उस बूढ़े आदमी से पूछा --- " बाबा ! यह पेड़ तुम किसके लिए लगा रहे हो ? जब इसमें फल लगेंगें , तब तुम इसे देखने के लिए नहीं रहोगे l फल भी तुम्हारे किसी काम न आएंगे l तुम्हारे जीवन के थोड़े से ही दिन शेष रह गए हैं , फिर इसे लगाने से तुम्हे क्या फायदा ? " वृद्ध ने सहज स्वर में उत्तर दिया --- " फलों के पेड़ इसलिए नहीं लगाए जाते कि हम लगाते ही उनके फल खायेंगे l पेड़ को लगाता कोई और है और खाता कोई और है l यह दुनिया की बहुत पुरानी रीत है l जो फल मैं आज खा रहा हूँ , उसके पेड़ मेरे पूर्वजों ने लगाए थे l मेरे इस पेड़ के फल आने वाली पीढियां खाएँगी l " नदी अपने लिए नहीं बहती , पेड़ अपने फल नहीं खाता l इससे यह सीख मिलती है कि व्यक्ति को सदैव दूसरों के हित के लिए कार्य करना चाहिए l सबके हित में ही हमारा हित है l
No comments:
Post a Comment