लघु कथा ----गिरगिट , कछुए और गिलहरी में वार्तालाप चल रहा था l अपनी शेखी बघारते हुए गिरगिट बोला ---- "देखो ! मैं कितना चतुर हूँ , जब चाहे अपना रंग बदल लेता हूँ और मेरी असलियत कोई नहीं जान पाता l " कछुआ कहाँ पीछे रहने वाला था , वो कहने लगा ---- " " अरे मित्रों ! मेरी जैसी विशेषता तो किसी में भी नहीं है l बाहर नगाड़े पिटते रहें , पर एक बार मैं अपने खोल में समा जाता हूँ तो मैं अलग और जमाना अलग l " गिलहरी बोली ---- " भाइयों ! मैं तुम दोनों की तरह स्वार्थी और अवसरवादी तो नहीं कि अपने को दुनिया से अलग मानने और मौका देखकर रंग बदलने को कोई गुण मानूँ l मुझे इतना पता है कि ऊँचे उदेश्य के लिए कार्य करने वाली मेरी ही जैसी गिलहरी की पीठ पर भगवान के हाथ पड़े थे l मेरी पीठ पर जो तीन रेखाएं तुम देख रहे हो , वह उन्हीं सत्कार्यों के लिए ईश्वर का वरदान है , जो पीढ़ी -दर -पीढ़ी हमारे साथ चला आ रहा है l " गिरगिट और कछुए के सिर यह सुनकर शरम से झुक गए l
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