ऋषियों का वचन है कि --- दुष्ट लोगों का साथ हमेशा दुःख देने वाला होता है l दुष्ट लोगों का कभी कोई एहसान न ले और उनकी संगत से हमेशा दूर रहे l ' दुष्ट की संगत यदि हम छोड़ भी दें , तो वे अपनी दुष्टता के कारण हमारा पीछा नहीं छोड़ते क्योंकि दूसरों को कष्ट पहुँचाना ही उनका स्वभाव होता है l ---- हकीम लुकमान ने अपने अंतिम समय में अपने बेटे को जीवनोपयोगी शिक्षा देने के लिए उसे एक कोयला और एक चन्दन का टुकड़ा लाने के लिए कहा l वह दोनों को लेकर पिता के पास पहुंचा l पिता ने दोनों को नीचे फेंक देने के लिए कहा l बेटे ने उन्हें नीचे फेंक दिया तो लुकमान ने बेटे से हाथ दिखाने के लिए कहा l फिर वह उसका कोयले वाला हाथ पकड़ कर बोले ---- "बेटा ! देखा तुमने l कोयला पकड़ते ही हाथ काला हो गया l उसे फेंक देने के बाद भी हाथ में कालिख लगी रह गई l गलत लोगों की संगति ऐसी ही दुःखदाई होती है l दूसरी ओर सज्जनों का संग इस चन्दन की लकड़ी की तरह है ---- जो साथ रहते हैं तो दुनुया भर का ज्ञान मिलता है और उनका साथ छूटने पर भी उनके विचारों की महक जीवन भर साथ रहती है l सदैव अच्छे लोगों की संगति में रहना , तुम्हारा जीवन भी सुखद रहेगा l " महाभारत में भी इसी सत्य को बताया गया है ----- दुर्योधन को तो बाल्यकाल से ही शकुनि की संगत मिली इसलिए वह उसके साथ मिलकर पांडवों के विरुद्ध छल , कपट और षडयंत्र करने लगा लेकिन पितामह भीष्म , गुरु द्रोणाचार्य , कृपाचार्य महाज्ञानी , वीर और विद्वान् थे लेकिन दुर्योधन आदि कौरवों की संगति के कारण , और दुर्योधन युवराज था उसके शासन से मिली सुविधाओं को भोगने के कारण वे उसकी हर अनीति और षड्यंत्र का मौन रहकर समर्थन करते रहे l भीष्म पितामह को तो इच्छा मृत्यु का वरदान था , जिस हस्तिनापुर साम्राज्य की सुरक्षा की जिम्मेदारी उन्होंने ली थी , उसी कौरव वंश का अंत उन्होंने अपनी आँखों से देखा l दुर्योधन की संगत ने उन्हें शर शैया पर पहुंचा दिया l वर्तमान समय में भी हम देखें तो अधिकांश लोग क्षणिक लाभ के लिए , अपनी महत्वाकांक्षा की पूर्ति के लिए दुष्टों का साथ देते हैं l इसका दूरगामी परिणाम क्या होगा इसे वे समझ नहीं पाते l जब ईश्वरीय न्याय होता है तब विलाप करते हैं l
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