' सच्चे गुरु के लिए सैकड़ों जन्म समर्पित किए जा सकते हैं l सच्चा गुरु वहां पहुंचा देता है , जहाँ शिष्य अपने पुरुषार्थ से कभी नहीं पहुँच सकता l ' केवल गुरु का नाम लेना ही पर्याप्त नहीं है , गुरु के विचारों को अपने जीवन में उतार कर और उसके अनुरूप आचरण कर के ही सच्चा शिष्य बना जा सकता है l गुरु ही हैं जो हमारी चेतना को जगाते हैं ताकि हम अध्यात्म के पथ पर आगे बढ़ सकें l ---- एक प्रसंग है ---नाथ परंपरा में दीक्षित योगी माणिकनाथ के जीवन का l उन्हें अपनी सिद्धियों का बहुत अहंकार हो गया था l उनका आश्रम गुजरात में माणिक नदी के तट पर था l उन दिनों वहां के शासक अहमदशाह थे , वे अपने नाम पर ' अहमदाबाद ' नगर बसाना चाहते थे , इसके लिए उस स्थान का चयन हुआ जहाँ माणिकनाथ का आश्रम था l जब आश्रम के सामने निर्माण कार्य शुरू हुआ तो माणिकनाथ को बहुत गुस्सा आया कि यदि कोई निर्माण कार्य करना था तो हम से पूछ लिया होता l बिना पूछे करने से योगी का अपमान होता है l अब वे अपनी सिद्धियों के बल पर निर्माण कार्य में रूकावट डालने लगे l सुल्तान परेशान होकर उनके पास गए , उनकी बहुत प्रशंसा की और कहा आप तो सिद्धियों के स्वामी है , कार्य में अड़चन डालना आपको शोभा नहीं देता l अपनी प्रशंसा सुनकर योगीजी का अहंकार और बढ़ गया l वे कहने लगे --मैं चाहूँ तो आकाश में उड़ जाऊं , मैं चाहूँ तो तुम्हारे सामने रखे इस गंगासागर लोटे में समा जाऊं , तुमने मेरा अपमान किया ! सुलतान चतुर थे , उन्होंने कहा --- इतनी बड़ी काया और इतना छोटा सा लोटा , आप कैसे इसमें समा सकते हैं , हमें दिखाइए l सुलतान ने उनकी तारीफ़ कर के उन्हें उकसाया l योगी माणिक नाथ भी फूले नहीं समाये l अपनी सिद्धियों का प्रयोग कर के उन्होंने अपने को एकदम लघु बना लिया और लोटे में प्रवेश कर गए l सुल्तान ने अपने दीवान को इशारा किया कि लोटे का मुँह बंद कर दो l अब तो योगी लोटे में बंद बड़ी मुश्किल में फंस गए l अन्दर से धमकी देने लग गए कि मैं तुम्हारा सर्वनाश कर दूंगा , राज्य को नष्ट कर दूंगा l जब सुल्तान नहीं माने तो योगी ने कहा --- सावधान ! मैं लोटा फोड़कर बाहर आ रहा हूँ और तुम्हे सबक सिखाऊंगा l माणिक नाथ वज्रास्त्र का प्रयोग करने को तत्पर हुए , लेकिन यह क्या ! वे तो सब सिद्धियाँ भूल गए क्योंकि उनके गुरु ने उनको पहले ही समझा दिया था कि सामान्य मनुष्य हो या योगी , उसे अहंकार से दूर रहना चाहिए , यदि तुम अहंकार प्रदर्शन करोगे तो संपूर्ण विद्या भूल जाओगे l अपनी ऐसी हालत देखकर योगी रो पड़े और अपने गुरु गोरखनाथ जी का स्मरण किया l बाबा गोरखनाथ जी उनके लोटे में प्रकट हुए और कहा --- अहंकार उचित नहीं है , सुल्तान के काम में विध्न पैदा न करो l इतना कहकर वे अंतर्ध्यान हो गए l माणिक नाथ ने सुल्तान से निवेदन किया कि लोटे का मुँह खोल दो , मेरे गुरु मुझे समझा गए , अब मैं तुम्हारे कार्य में बाधा नहीं डालूँगा l सुल्तान के संकेत पर लोटे का मुँह खोल दिया गया , वे उससे बाहर आ गए l सुल्तान उनके चरणों में गिरकर क्षमा मांगने लगे l योगी ने उन्हें अभयदान और आशीर्वाद दिया l इसके बाद उसी स्थान पर उन्होंने अपने शरीर का परित्याग कर दिया l उनकी स्मृति में सुलतान ने नगर के परकोटे के एक बुर्ज का नाम माणिक बुर्ज और नगर के मुख्य चौक का नाम माणिक चौक रखा l अहमदाबाद का माणिक बुर्ज और माणिक चौक आज भी योगी माणिकनाथ की याद दिलाते हैं l
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