श्रीमद् भगवद्गीता में भगवान ने कहा है कि कोई भी कार्य बड़ा या छोटा नहीं होता , उस कार्य को करने के पीछे हमारी भावना क्या है , हमारे मनोभाव क्या हैं , इस पर उस का परिणाम निर्भर करता है l यज्ञ को एक सात्विक कर्म माना जाता है लेकिन उसके करने के पीछे यज्ञ करने की भावना क्या है , उसी के अनुरूप उसे परिणाम मिलता है l राम -रावण युद्ध में भगवान श्री राम और रावण दोनों ने ही युद्ध की शुरुआत यज्ञ से की थी l भगवान राम का उदेश्य धर्म की स्थापना और अधर्म का नाश था l असुरों के आतंक से मानवता की रक्षा करना था l इसके विपरीत रावण का उदेश्य अपने अहंकार का पोषण करना था l जैसे मनोभाव थे वैसा ही परिणाम मिला श्रीराम की विजय हुई और रावण का अपने नाती -पोतों सहित अंत हुआ l पुराण में कथा है कि दक्ष प्रजापति ने एक विशाल यज्ञ किया l इस यज्ञ को करने का उनका एकमात्र उदेश्य अपने दंभ का प्रदर्शन करना था l परिणाम स्वरुप माता सती को उस यज्ञ में अपने प्राणों की आहुति देनी पड़ी और अंततः भगवान शिव के रूद्र रूप ने उस यज्ञ को विनष्ट कर दिया l
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