श्रीराम के एक ही शिष्य हैं , हनुमान जी l बड़े से बड़ा काम कर के भी उन्हें कोई अहंकार नहीं l परम समर्थ और सतत राम -नाम का जप l जब वे लंका जलाकर अकेले ही रावण का मान मर्दन कर प्रभु के पास लौटे और प्रभु ने पूछा कि त्रिभुवन विजयी रावण की लंका को तुमने कैसे जलाया हनुमान ! तब उन्होंने कहा --- सो सब तव प्रताप रघुराई l नाथ न कछू मोरि प्रभुताई l श्री हनुमान जी व्याकरण के पंडित , वेदज्ञ , ज्ञान शिरोमणि, बड़े विचारशील , तीक्ष्ण बुद्धि और अतुल पराक्रमी हैं , लेकिन अति विनम्र हैं , अहं उन्हें छू भी नहीं गया है l सभी भक्तों के वे आदर्श हैं l श्रीराम कहते हैं ----- सुनु सुत तोहि उरिन मैं नाहीं l देखेउँ करि बिचार मन माहीं l
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