पं . श्रीराम शर्मा आचार्य जी लिखते हैं ---- " बुराई करने की आदत यदि हमारे जीवन में शामिल है तो यह हमारे व्यक्तित्व का नकारात्मक पहलू है , जो हमारे विकास में हमेशा बाधक है l इसके कारण हम अपने लक्ष्य से भटक जाते हैं और संसार के दोष ही देखते रहते हैं , अच्छाईयों को नहीं देख पाते l दोष या बुराइयाँ देखते रहने से उनमें ही रस मिलने लगता है और धीरे -धीरे दूसरों की बुराई करना स्वभाव का स्थायी हिस्सा बन जाता है l बुराई करने की इच्छा को निंदा रस भी कहते हैं l यह आदत केवल हम तक सीमित नहीं रहती , बल्कि इसका प्रभाव हमसे जुड़े अन्य लोगों पर भी होता है और धीरे -धीरे सब लोग अन्य लोगों की बुराई करने की गतिविधि में सम्मिलित हो जाते हैं l इस आदत की वजह से उनके चारों ओर एक ऐसा नकारात्मक औरा बन जाता है जिसकी वजह से कोई भी सकारात्मक विचार व भाव उनकी ओर आकर्षित नहीं होता l " बुराई करने की इस आदत का घातक प्रभाव पारिवारिक संबंधों पर पड़ता है , घर में लड़ाई -झगड़े होते हैं , कलह मची रहती है , घर की सुख -शांति खो जाती है l आचार्य श्री लिखते हैं ---- यदि हम लंबे समय से दूसरों की कमियाँ , बुराई देख रहे हैं , तो इस आदत को छोड़ना इतना आसान नहीं है , लेकिन हम इस बात के लिए सतर्क रहें कि उस यदि हमें किसी व्यक्ति की कोई कमजोरी या गलती दिखाई देती है तो उसे कहने से पहले उसकी एक अच्छाई को प्राथमिकता दें , उसके बाद उसकी कमियों को उजागर करें l इस तरह सुनने वाला व्यक्ति अपनी अच्छाई को देख सकेगा और प्रसन्नता के साथ अपनी कमियों को दूर करने के लिए सहमत हो सकेगा l इसके साथ यह भी जरुरी है कि हम अपनी कमियों को भी समझें और उन्हें दूर करने का प्रयास करें l हमें जीवन में अपनी अच्छाइयों और गुणों को देखने की आदत डालनी चाहिए l उन गुणों को बढ़ाने और उनका सदुपयोग करने से जीवन सकारात्मक दिशा में आगे बढ़ता है l
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