हमारे महाकाव्य , धर्मग्रन्थ चाहे जिस भी युग में लिखे गए हों , उनमे हर व्यक्ति के लिए वह जिस काल में भी हो शिक्षाएं हैं l उन ऋषियों के पास जो ज्ञान था , जो प्रेरणाएं उन्हें ईश्वर से प्राप्त होती थीं उनमें हर युग की समस्याओं का समाधान था l जैसे रामायण में प्रसंग है कि दासी मंथरा ने केकैयी के कान भरे कि राम को वनवास हो और भरत का राज्याभिषेक हो l केकैयी महारानी थीं लेकिन एक एक निम्न मानसिकता की दासी की बातों में आ गईं और राजा दशरथ से दो वर मांग लिए l परिणाम हुआ कि राम को वनवास हो गया , राजा दशरथ परलोक सिधार गए , अयोध्या में मातम छा गया l यहाँ महत्वपूर्ण बात यह है कि ककैयी ने भरत के पक्ष को सुना ही नहीं , यह जानने का प्रयास ही नहीं किया कि उनके मन में क्या है , वे गद्दी चाहते भी हैं या नहीं l बस ! अपनी इच्छा उन पर थोपनी चाही l यह स्थिति आज है l माता -पिता समाज में अपने स्टेट्स को बनाये रखने के लिए अपनी इच्छा बच्चों पर थोपते हैं , उनकी रूचि का ध्यान नहीं रखते l इस प्रसंग से एक शिक्षा यह भी मिलती है कि हमें कान का कच्चा नहीं होना चाहिए क्योंकि कलियुग में स्वार्थ , ईर्ष्या , द्वेष इस कदर बढ़ गया है कि लोग दूसरों का हँसता -खेलता परिवार देख नहीं सकते , रिश्तों का महत्त्व ख़त्म हो गया l पति -पत्नी में फूट डालने के लिए , बच्चों को अपने ही माता -पिता से दूर करने के लिए निम्न मानसिकता के लोग इसी तरह कान भरते हैं , गासिप करते हैं ताकि उनका स्वार्थ पूरा हो सके l ऐसे लोगों से दूरी बना लेनी चाहिए l
No comments:
Post a Comment