आचार्य गुरुकुल में पढ़ा रहे थे l एक शिष्य ने प्रश्न किया -- ' गुरूजी ! धन , कुटुंब और धर्म में कौन सच्चा सहायक होता है ? ' आचार्य बोले ---- " वत्स ! धन वह है , जिसे मनुष्य जीवन भर प्रिय समझता है , लेकिन उसकी मृत्यु के बाद धन उसके साथ एक कदम की भी यात्रा नहीं करता l कुटुंब यथासंभव सहायता तो करता है , परन्तु उसका सहयोग भी शरीर रहने तक ही है l मात्र धर्म ही ऐसा है , जो लोक और परलोक , दोनों में मनुष्य का साथ देता है और उसे दुर्गति से बचाता है l यद्यपि मनुष्य जीते जी इसकी उपेक्षा करता है , तब भी यही धर्म मनुष्य को चिरस्थायी सुख -शांति प्रदान करता है l
2 . संत गुरु नानक तीर्थ यात्रा पर थे तो उनसे किसी ने आकर पूछा --- " हिन्दू और मुसलमान में कौन बड़ा है ? " गुरु नानक जी ने उत्तर दिया ---- " धर्म का मर्म अच्छे कर्म करने में है l बड़ा वह कहलाता है जो अच्छे कर्म करता है l कोई धर्म के आधार पर बड़ा नहीं होता l कहने को खजूर का पेड़ भी बड़ा होता है , पर उससे किसी की भलाई नहीं होती है लेकिन तुलसी का छोटा सा पौधा भी अनेक रोगों का नाश कर देता है l यदि बड़प्पन और महानता का आकलन करना है तो व्यक्ति के कर्मों को देखो , वह किस सम्प्रदाय या मजहब को मानता है -- इससे उसके बड़प्पन का मूल्यांकन मत करो l " उस व्यक्ति ने फिर पूछा --- " क्या अच्छे कर्म करने के लिए किसी धर्म को मानना जरुरी नहीं है ? " गुरु नानक जी बोले ---- " अच्छे कर्म करना ही धर्म है l अच्छे कर्म करने वालों को किसी धर्म को मानने की आवश्यकता नहीं है l "
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