कहते हैं ' अति ' हर चीज की बुरी होती है l महत्वाकांक्षा भी यदि अति की हो तो उसका दुष्परिणाम परिवार को , समाज को और संसार को झेलना पड़ता है l ऐसा व्यक्ति जिस भी क्षेत्र में है वह चाहता है सब उसे प्रणाम करें , उसकी गरिमा को समझें , उसके कहे अनुसार आचरण करे l पं . श्रीराम शर्मा आचार्य जी लिखते हैं ----' महत्त्व को जिस -तिस तरह हथिया लेने की ललक ऐसा विष है जो जिस क्षेत्र में घुसेगा उसे विषैला बना देगा l ' सिकंदर , हिटलर को विश्व विजयी होने का सम्मान पाने की ललक थी , इसके लिए लाखों -करोड़ों को मारने -काटने में उन्हें कोई तकलीफ नहीं हुई l अति का महत्त्व पाने की इच्छा धार्मिक क्षेत्र में व्यक्ति को धूर्त और पाखंडी बना देती है l अपने भीतर की कमजोरियों को छिपाकर -संत का वेश विन्यास कर व्यक्ति लाखों से अपनी पूजा भक्ति करा लेता है l इस महत्वाकांक्षा ने संसार में लाखों गुरु , सैकड़ों भगवान , अवतार पैदा कर दिए l सामाजिक क्षेत्र में महत्त्व लूटने की , सम्मान पाने की चाह ने कितने ही नकली समाज सेवी पैदा कर दिए l अमीरों की गिनती में आगे बढ़ने की चाह में संसार में धन कमाने के कितने ही गलत तरीके फ़ैल गए हैं l महत्त्व पाने की इस ललक में व्यक्ति दोहरा जीवन जीता है l अन्दर से नीति , मर्यादा की अवहेलना करते हुए बाहर से बहुत मर्यादित , अनुशासनप्रिय दिखाने का प्रयत्न करता है l कई लोग तो अपने चेहरे पर इतने चेहरे लगा लेते हैं कि वे स्वयं ऐसी मन;स्थिति में पहुँच जाते हैं की वे अपना सच ही भूल जाते हैं , मानसिक रूप से बीमार हो जाते हैं l पं . श्रीराम शर्मा आचार्य जी लिखते हैं ---' बुराई बुराई है पर अच्छाई के गर्भ में बुराई को भरण -पोषण मिलना और अधिक भयंकर है l पाप को पाप समझकर उससे बचा जा सकता है लेकिन जो पाप , पुण्य की आड़ में किया जाता है उससे बच पाना बहुत कठिन है l शत्रु से बचाव आसान है , पर मित्र बने शत्रु से बच पाना असंभव है l " जागरूक रहें और अति से बचें l
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