लघु कथा ---- विनाश का कारण सांसारिक आकर्षण '------ कालिंदी के महापंडित कौत्स स्नान कर प्रात: वंदना कर रहे थे l एक घड़ियाल उन्हें काफी दूर से ताक रहा था , किन्तु कौत्स ऐसी ऊँची शिला पर बैठे थे कि घड़ियाल वहां तक पहुँच नहीं सकता था l उसने युक्ति से काम लिया और यमुना की तलहटी से रत्नों का ढेर उठाकर ऊपर की ओर उछाला l अपने चारों ओर मणि -मुक्तक देखकर महर्षि कौत्स का लोभ जाग उठा l उसने कौत्स से कहा --- " आचार्य ! मैं त्रिवेणी का रास्ता नहीं जानता , यदि आप मेरी पीठ पर बैठकर मुझे त्रिवेणी का रास्ता बता दें तो मैं इन तुच्छ मोतियों से बढ़कर पांच मुक्ताहार दे सकता हूँ l कौत्स के हर्ष का ठिकाना न रहा l घड़ियाल ने उन्हें पीठ पर बैठाया l अभी वह बीच धार में पहुंचा ही था कि उसे हंसी आ गई l घड़ियाल को हँसते देख कौत्स ने पूछा --- " वत्स ! असमय आपकी हँसी का क्या कारण है ? " घड़ियाल ने कहा --- " आचार्य ! आप जीवन भर दूसरों को उपदेश देते रहे कि विनाश सांसारिक आकर्षण के रूप में आता है l मनुष्य जब एक बार वासनाओं के शिकंजे में आ जाता है तब ये वासनाएं मनुष्य को वहां ले जाती हैं , जहाँ सिवाय विनाश के कुछ नहीं होता l दूसरों को उपदेश देने के बावजूद तुम यह तथ्य न समझ सके और आज एक लालच ने तुम्हे सर्वनाश के पास पहुंचा दिया l यह कहकर उसने कौत्स को उछाला और एक ही क्षण में निगल लिया l उपदेश देना बहुत सरल होता है , लेकिन उसे आचरण में उतारना बहुत कठिन l
No comments:
Post a Comment