लोभ , भय और अहंकार --- मनुष्य की ये तीन बुराइयाँ ऐसी हैं जिनकी वजह से परिवार से लेकर संसार में उथल -पुथल दिखाई देती है l लोभ या लालच के कारण ही व्यक्ति संसार में धन -वैभव , पद -प्रतिष्ठा और सभी सांसारिक सुखों को पाने के लिए जी -तोड़ प्रयास करता है l कलियुग में दुर्बुद्धि का प्रकोप होता है , इस कारण मनुष्यों के सभी प्रयासों में सत्यता नहीं होती , छल -कपट , धोखा , षड्यंत्र ----- नकारात्मकता होती है l जो लोग इस युग में भी सच्चाई और ईमानदारी से जीवन व्यतीत करते हैं , वे निर्भय होते हैं l ऐसे लोग ईश्वर विश्वास पर अपना जीवन जीते हैं , उन्हें किसी का भी भय नहीं होता l लेकिन जो जितना वैभव -संपन्न है , ऊँचे पद पर है वह उतना ही अधिक भयभीत है , उसे उतनी ही अधिक सुरक्षा की जरुरत है l लोभ के साथ ही मोह पैदा हो जाता है फिर उसके खोने का भय सताता है l पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी लिखते हैं ---- " भविष्य की चिंता , , अतीत में हो चुकी भूलें , उसे परेशान करती हैं , भयभीत और असुरक्षित रखती हैं l " इन सबसे ऊपर है अहंकार l अहंकारी स्वयं को ही सर्वश्रेष्ठ समझता है , चाहता है सब उसके सामने नत -मस्तक हों l ये सब मानसिक कमजोरियां हैं जिनके वशीभूत होकर व्यक्ति गलत काम करता है , ये गलतियाँ ही उसे भयभीत करती हैं l संसार से चाहे वह इन गलतियों को छुपा ले लेकिन मनुष्य का मन एक दर्पण है , उसका मन , उसकी आत्मा उसके भले =बुरे कर्मों को उसे बार -बार दिखाती है l जिस मन के वशीभूत होकर वह गलत कार्य करता है , उस मन से वह भाग नहीं सकता l उसका मन ही उसे कचोटता है l इसी कारण वह भयभीत रहता है और आत्महीनता से घिर जाता है l इसलिए हमारे ऋषियों ने जीवन में संतुलन पर जोर दिया है l संसार के सुखों का भी आनंद लो , इसके साथ सच्चे अध्यात्म को जीवन में अपनाकर उन सुखों की मर्यादा भी निर्धारित करो l तभी मन की शांति मिलेगी l
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