इस संसार में भिन्न -भिन्न मनोवृत्ति के लोग हैं l सबकी आदतें , जीवन जीने का तरीका , विचार भिन्न हैं l ईश्वर के प्रति लोगों के विचारों में भिन्नता है , कोई आस्तिक है , कोई धर्मांध हैं l ऋषियों का वचन है कि ईश्वर का निवास हम सबके ह्रदय में है , अपने मन को निर्मल बनाओ , सन्मार्ग पर चलो तो उसी ह्रदय में भगवान के दर्शन होंगे और और मन में बसे ईश्वर से बातचीत का सुन्दर अवसर भी मिलेगा l लेकिन मनुष्य ने ईर्ष्या , द्वेष , लालच , तृष्णा , महत्वाकांक्षा , कामना , वासना आदि बुराइयों से अपने भीतर इतनी गंदगी जमा कर ली है कि उसे अपने ह्रदय में बैठे ईश्वर की अनुभूति ही नहीं हो पाती है l कलियुग की सबसे अच्छी बात यह है कि ईश्वर कहीं भी , किसी भी धर्म में प्रत्यक्ष दिखाई नहीं देते फिर भी लोग उनके नाम पर लड़ते रहते हैं l कभी विभिन्न धर्म आपस में लड़ते हैं , कभी एक ही धर्म के आपस में लड़ते हैं l यह भी अच्छी बात है कि लोग आपस में ही लड़ते हैं , भगवान तटस्थ , ऊपर से सब देखते हैं l द्वापर युग में तो हालात बहुत बुरे थे , लोग प्रत्यक्ष रूप से भगवान से लड़ते थे l भगवान श्रीकृष्ण सामने खड़े थे और शिशुपाल ने उन्हें सौ गलियाँ दीं l भगवान श्रीकृष्ण दुर्योधन को समझाने गए कि जिद्द नहीं करो , पांडवों को केवल पांच गाँव दे दो l तो समझना तो दूर उसने सैनिकों को आज्ञा दी कि इन्हें बंदी बना लो l अहंकार इतना सिर चढ़ गया कि भगवान को बंदी बनाने चला l रावण तो इतना अहंकारी था कि उसने भगवान राम की पत्नी माँ सीता का ही हरण किया l ऐसे ही पुराणों में अनेक उदाहरण हैं , भस्मासुर , हिरण्यकश्यप आदि अनेक असुरों ने स्वयं को भगवान मान लिया , उन्हें ईश्वर की सत्ता का कोई डर नहीं था l कलियुग में भी अनेक धर्म के प्रवर्तकों को बहुत कष्ट दिए गए , अति का सताया गया l लेकिन अब परिस्थितियों में काफी सुधार हुआ है l आपस में ही लड़ -भिड़कर शांत हो जाते हैं l एक बात प्रत्येक युग में समान है --- ईश्वर चाहें प्रत्यक्ष हो या अप्रत्यक्ष हों वे केवल एक सीमा तक ही सहन करते हैं l जब भी अति हो जाती है तब शिवजी का तृतीय नेत्र खुल जाता है , सुदर्शन चक्र पीछा नहीं छोड़ता , विभिन्न रूपों में दैवीय प्रकोपों का सामना करना पड़ता है , सामूहिक दंड मिलता है l इसलिए हमें ' अति ' से बचना चाहिए l मनुष्य शरीर होने के नाते गलतियाँ सभी से होती हैं , लेकिन हम संकल्प लें और उन गलतियों को बार -बार नहीं दोहराएँ l ईश्वर के दरबार में छल -कपट नहीं चलता , वे हम सब के ह्रदय में बैठे हैं , हम क्या कर रहे हैं , क्या सोच रहे हैं , हमारी भावना क्या है , सब पर उनकी नजर है l
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