' जाकी रही भावना जैसी , प्रभु मूरत देखी तिन तैसी l ' जिसकी जैसी भावना होती है वह प्रभु को उसी रूप में देखता है l हम ईश्वर से उनके प्रेम की , आशीर्वाद की कामना करते हैं l सूरदास जी ने भगवन के बाल रूप को चाहा , भगवान उन्हें उसी रूप में मिले , उनका जीवन सफल हो गया l मीरा के ' गिरधर गोपाल थे , एक अनोखा बंधन था l अर्जुन ने भगवान को सखा रूप में देखा , भगवान ने उनके जीवन रूपी रथ की डोर संभाल ली l l रामकृष्ण परमहंस जी ने उन्हें माँ के रूप में देखा , उन्हें माँ का स्नेह मिला l अधिकांश लोग ईश्वर को ' माँ ' के रूप में देखते हैं , देवी के विभिन्न रूपों की उपासना करते हैं l इस संबंध के बारे में ऋषियों ने कहा भी है कि ' पिता न्याय करते हैं , जो गलती की है उसकी सजा देते हैं लेकिन माँ दुलार करती हैं , अपने भक्त को संरक्षण देती हैं , उसे उसकी गलतियों को सुधारने का अवसर भी देती हैं l इसलिए जीवन में सफलता के लिए पिता और माता दोनों की जरुरत है l शिव -शक्ति , राधा -कृष्ण -- दोनों ही ऊर्जा के संतुलन होने से जीवन पूर्ण होता है l ईश्वर ने सबको चुनाव की स्वतंत्रता दी है , वे उन्हें किसी भी रूप में पूज सकते हैं , किसी भी भाषा में उन्हें पुकार सकते हैं l अब जिस रूप में उन्हें पुकारोगे , वे उसी रूप में आयेंगे जैसे कंस कृष्ण जी को इसी रूप में याद करता था कि उनका जन्म उसे मारने के लिए हुआ है तो जो कृष्ण गोकुल में सबके प्रिय थे , उन्होंने मथुरा आकर कंस का वध कर दिया l इसलिए हमारी संस्कृति में ईश्वर को माँ के रूप में देखा जाता है जैसे धरती माँ , प्रकृति माँ ---- इससे हमें संरक्षण मिलता है और बाहर व भीतर संतुलन स्थापित होता है l कई लोग ईश्वर को उनके उग्र रूप में याद करते हैं , देवी के रूप में नहीं पूजते l ईश्वर के नारी रूप का , नारी शक्ति का उन्हें ध्यान ही नहीं होता l इससे भगवन को कोई फरक नहीं पड़ता , ईश्वर तो सर्व समर्थ हैं , उन्होंने तो मनुष्य को चयन की स्वतंत्रता दी है लेकिन जो उग्र रूप का ध्यान करते हैं उनके स्वभाव में उग्रता , कठोरता , अहंकार , असहिष्णुता आ जाती है , फिर उनके कर्म व व्यवहार भी वैसा ही कठोर हो जाता है l कर्मों के अनुसार परिणाम भी तय हो जाता है जबकि देवी रूप को मानने से स्वभाव में करुणा , दयालुता , स्नेह , ममता जैसे गुण आ जाते हैं l इसलिए हमारे ऋषियों ने शिव और शक्ति दोनों को बराबर महत्त्व दिया है l जहाँ आवश्यक हो वहां कठोर रहो , जहाँ आवश्यक हो वहां करुणा , और प्रेम स्नेह का व्यवहार करो l यह संसार पुरुष प्रधान है लेकिन ईश्वर के दरबार में सब बराबर है और सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड के लिए ही दोनों ही ऊर्जा की आवश्यकता है l
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