तपस्वी को तप करने का मूलमंत्र देते हुए गुरु बोले ---- " तप में सफलता अभीष्ट हो इसके लिए आहार का संयम सबसे जरुरी है l यदि स्वाद की इन्द्रिय ढीली छूट जाती है तो बाकि सभी इन्द्रिय बेलगाम हो जाती हैं l इसी पर सबसे पहले विजय प्राप्त करो l " एक कथा है ---- एक राजा जंगल में शिकार करने गया l रात्रि हो जाने से वहां एक आश्रम में विश्राम करने के लिए रुक गया l आश्रम वासियों ने राजा की बहुत सेवा की l राजा ने प्रसन्न होकर वहां आश्रम में एक वैद्य को नियुक्त कर दिया जिससे उन्हें चिकित्सा के लिए इतनी दूर शहर में आने की परेशानी न हो l कुछ समय गुजरा , वैद्य के पास कोई भी इलाज के लिए नहीं आया l वह वैद्य राजा के पास गया और बोला ---- " महाराज मैं यहाँ निष्क्रिय जीवन ही व्यतीत कर रहा हूँ l आश्रम में मेरा कोई उपयोग नहीं है l " राजा को आश्चर्य हुआ कि आश्रम में कोई बीमार नहीं पड़ता l इस संबंध में जब राजा ने आचार्य से पूछा तो आचार्य बोले ----- "राजन ! यहाँ प्रत्येक आश्रमवासी को सुबह से शाम तक श्रम करना पड़ता है l जब तक भूख परेशान नहीं करतीं , कोई भी भोजन नहीं करता है l जब कुछ भूख शेष रह जाती है तो वे भोजन बंद कर देते हैं l इस प्राकृतिक और स्वच्छ वातावरण में सबको पवित्र वायु और प्रकाश मिलता है l यही इनके आरोग्य का मूल कारण है l " राजा को भी अपने लिए आरोग्य का मन्त्र मिल गया l
No comments:
Post a Comment