लघु कथा के माध्यम से यह बताया गया है कि लोभ , मोह और अहंकार से ग्रस्त व्यक्ति कैसे चक्रव्यूह में फंसा रहता है , कभी मुक्त नहीं हो पाता l ----- 1 . मोह ---- मोह कभी छूटता नहीं , मृत्यु के बाद शरीर से मोह बना रहता है l कभी -कभी किसी को गहरा आघात पहुँचता है , कोई चोट ह्रदय पर पहुँचती है तो उसका मोह छूट जाता है ----- राजा भर्तहरी को किसी साधु ने अमरफल दिया l राजा को अपनी रानी से बहुत प्रेम था सो उन्होंने वह फल अपनी रानी को दे दिया l रानी एक साधु को चाहती थी इसलिए उसने वह फल साधु को दे दिया l साधु ने उस फल को एक नर्तकी को दे दिया l नर्तकी ने सोचा कि वह इस फल का क्या करेगी , उसने वह फल राजा को दे दिया l राजा को जब सब बात का पता चला तो उसे बहुत ग्लानि हुई और उसने राजपाट छोड़कर संन्यास ले लिया l 2 . अहंकार ---- अहंकार के वशीभूत होकर कार्य करने वालों को अपने कर्म का फल मिलता है ---- एक कथावाचक पंडितजी बहुत अच्छी कथा कहते थे l गाँव के सभी लोग कथा सुनने आते थे l एक व्यक्ति श्यामलाल बहुत सरल स्वभाव का था और कार्य में व्यस्त रहने के कारण कथा सुनने नहीं आता था l लोगों ने पंडितजी से शिकायत की कि श्यामलाल बहुत घमंडी है कथा सुनने नहीं आता है l एक दिन श्यामलाल पंडित जी को निमंत्रण देने गया तो पंडित जी ने क्रोध करते हुए कहा ----" मैं चल सकता हूँ , यदि तुम मेरी डोली को कंधे पर उठाकर ले चलो l " श्यामलाल ने कहा ---- " यह तो मेरा सौभाग्य होगा l " और वह उनकी डोली अपने कंधे पर उठाकर ले आया और उन्हें भोजन कराया l दोनों की मृत्यु हुई तो श्यामलाल तो अगले जन्म में राजा बना और पंडितजी हाथी बने l एक दिन हाथी को अपने पूर्व कंम की याद आ गई कि वह तो पंडित था l अब वह बिगाड़ गया और राजा को बैठने नहीं दिया l राजा के यहाँ एक सिद्ध ज्योतिषी संयोग से आए , उन्होंने राजा की बात सुनी l वे हाथी के पास गए और बोले ---- " मूर्ख , पहला जन्म तो अहंकार में बिगाड़ लिया l अब क्या चाहता है ? इस जन्म को भी बरबाद करेगा l हाथी को समझ आ गया < वह अहंकार छोड़कर अपने काम पर लग गया l
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