यह संसार कर्मफल विधान से चल रहा है l मनुष्य जैसे कर्म करता है , वैसा ही फल उसे मिलता है l यह ईश्वर निश्चित करते हैं कि हमें हमारे द्वारा किए गए अच्छे -बुरे कर्मों का फल इसी जन्म में मिलेगा या अगले किसी जन्म में ! काल की गति को कोई नहीं जानता l इस संसार में हमारे जितने भी रिश्ते -नाते हैं , जिनके मोह में हम फँसे हैं , वे हमारे ही कर्म हैं जो विभिन्न रिश्तों , सहकर्मी , मित्र आदि विभिन्न रूपों में हमारे सामने हैं l जो किसी न किसी तरह से अपना कर्ज वसूलने आए हैं या अपना कर्ज चुकाने आए हैं l यदि हम जीवन में मिलने वाले सुख -दुःख , अपने और परायों से मिलने वाले कष्ट , पीड़ा , आनंद आदि विभिन्न अनुभूतियों को इस ' ऋण व्यवस्था ' की द्रष्टि से देखें , समझे तो मन विचलित नहीं होगा , तनाव नहीं होगा , जीवन यात्रा सरल हो जाएगी l आचार्य श्री का कहना है --- 'इस संसार में यही लेन -देन चलता है l कभी कोई पिता बनकर अयोग्य पुत्र का कर्ज चुकाता है , कभी कोई सुयोग्य पुत्र पिता का कर्ज चुकता है l यह कर्ज केवल मनुष्य रूप में ही नहीं , कभी -कभी पशु -पक्षी बनकर , बैल , कुत्ता बनकर भी कर्ज चुकाना पड़ता है l एक कथा है ------ एक राजा के संतान तो होती थी , परन्तु एक -दो साल की होकर मर जाती थी l जब उसके पांचवें पुत्र का जन्म हुआ तो ज्योतिषी को बुलाकर उसकी जन्मपत्री दिखाई l ज्योतिषी ने कहा ---- " महाराज ! अब तक आपके जो पुत्र हुए हैं , वे सब आपसे अपना कर्ज वसूलने आए थे , और साल दो साल में अपना कर्ज लेकर चले गए , किन्तु आपका यह पुत्र अपना कर्ज चुकाने आया है , इसलिए आप इसे कोई कार्य न करने दें , जिससे यह अपना कर्ज न चुका सके तो यह आपके साथ तब तक रहेगा , जब तक कर्ज न चुका दे l यह सुनकर राजा अपने पुत्र पर दिल खोलकर पैसा खर्च करने लगा , जिससे वह और अधिक कर्जदार हो जाये l जब वह पंद्रह वर्ष का हुआ तो राज कर्मचारियों के साथ रथ पर बैठकर घूमने जा रहा था तो उसने देखा रास्ते में एक व्यक्ति बेहोश पड़ा है , उसने रथ रोककर उस व्यक्ति को उठाया और रथ पर बैठाकर उसे उसके घर पहुँचाया l वह एक सेठ का बेटा था , सेठ बहुत खुश हुआ और उसने राजकुमार के गले में मोतियों की माला पहना दी l राजकुमार ने बहुत मना किया लेकिन सेठ ने कहा -- " तुमने जो उपकार किया है उसका बदला तो मैं नहीं चुका सकता , तुम इसे स्वीकार कर लो l " महल आकर राजकुमार ने वह माला अपनी माँ को दी और खाना खाकर सोया तो सोता ही रह गया l घर में हाहाकार मच गया l ज्योतिषी को बुलाया और कहा --- " तुम्हारी विद्या तो झूठी हो गई मैंने तो इससे कोई धन नहीं लिया l " तब तक रानी ने वह मोतियों की माला लाकर दी और बताया कि यह उसे किसी सेठ ने दी थी l ज्योतिषी ने कहा --- " देखिए महाराज ! ज्योतिष विद्या झूठी नहीं है l इसे आपका कर्ज तो चुकाना ही था , साथ ही उस सेठ से कर्ज लेना भी था l सेठ से अपना कर्ज लेकर तथा आपसे कर्जमुक्त होकर वह चला गया l " राजा को यह अटल सत्य समझ में आ गया कि जब तक कर्म बंधन है तभी तक साथ है l जैसे ही कर्मबंधन समाप्त हुआ फिर कोई एक पल भी नहीं रुकता l
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