29 January 2024

WISDOM

   यह  संसार  कर्मफल  विधान  से  चल  रहा  है  l  मनुष्य  जैसे  कर्म  करता  है , वैसा  ही  फल  उसे  मिलता  है  l  यह  ईश्वर  निश्चित  करते  हैं  कि  हमें  हमारे  द्वारा  किए  गए  अच्छे -बुरे  कर्मों  का  फल  इसी  जन्म  में  मिलेगा   या  अगले  किसी  जन्म  में  !  काल  की  गति  को  कोई  नहीं   जानता  l  इस  संसार  में  हमारे  जितने  भी  रिश्ते -नाते  हैं  , जिनके  मोह  में  हम  फँसे  हैं  ,  वे  हमारे  ही  कर्म  हैं  जो  विभिन्न  रिश्तों , सहकर्मी , मित्र   आदि  विभिन्न  रूपों  में  हमारे  सामने  हैं  l   जो  किसी  न  किसी  तरह  से   अपना  कर्ज  वसूलने  आए  हैं    या  अपना  कर्ज  चुकाने  आए  हैं  l  यदि  हम  जीवन  में  मिलने  वाले  सुख -दुःख  , अपने  और  परायों  से  मिलने  वाले  कष्ट , पीड़ा ,  आनंद   आदि  विभिन्न   अनुभूतियों  को  इस  ' ऋण  व्यवस्था  '  की  द्रष्टि  से  देखें , समझे  तो  मन  विचलित  नहीं  होगा  , तनाव  नहीं  होगा  , जीवन  यात्रा  सरल  हो  जाएगी   l   आचार्य श्री  का  कहना  है --- 'इस  संसार  में  यही  लेन -देन  चलता  है   l  कभी  कोई  पिता  बनकर  अयोग्य  पुत्र  का  कर्ज  चुकाता  है  ,  कभी  कोई  सुयोग्य  पुत्र  पिता  का  कर्ज  चुकता  है  l  यह  कर्ज  केवल  मनुष्य  रूप  में  ही  नहीं  ,  कभी -कभी  पशु -पक्षी  बनकर , बैल , कुत्ता   बनकर  भी  कर्ज  चुकाना   पड़ता  है  l    एक  कथा  है  ------ एक  राजा  के  संतान  तो  होती  थी  , परन्तु   एक -दो   साल  की  होकर  मर  जाती  थी  l  जब  उसके  पांचवें  पुत्र  का  जन्म  हुआ  तो  ज्योतिषी  को  बुलाकर  उसकी  जन्मपत्री  दिखाई  l   ज्योतिषी   ने  कहा ---- " महाराज  !  अब  तक  आपके  जो  पुत्र  हुए  हैं  , वे  सब   आपसे  अपना  कर्ज  वसूलने  आए  थे  ,  और  साल  दो  साल  में  अपना  कर्ज   लेकर  चले  गए  ,  किन्तु  आपका  यह  पुत्र   अपना  कर्ज  चुकाने  आया  है  ,  इसलिए  आप  इसे  कोई  कार्य  न  करने  दें  , जिससे  यह  अपना  कर्ज  न  चुका  सके   तो  यह  आपके  साथ  तब  तक  रहेगा  ,  जब  तक  कर्ज  न  चुका  दे  l  यह  सुनकर  राजा   अपने  पुत्र  पर  दिल  खोलकर   पैसा  खर्च  करने  लगा  , जिससे  वह  और  अधिक  कर्जदार  हो  जाये  l  जब  वह  पंद्रह  वर्ष  का  हुआ   तो  राज कर्मचारियों   के  साथ  रथ  पर  बैठकर  घूमने  जा  रहा  था   तो  उसने  देखा   रास्ते  में  एक  व्यक्ति  बेहोश  पड़ा  है  , उसने  रथ   रोककर    उस  व्यक्ति  को  उठाया   और  रथ  पर  बैठाकर  उसे   उसके  घर  पहुँचाया    l  वह  एक  सेठ  का  बेटा  था  , सेठ  बहुत  खुश  हुआ  और  उसने  राजकुमार  के  गले  में  मोतियों  की  माला  पहना  दी  l  राजकुमार  ने  बहुत  मना  किया  लेकिन  सेठ  ने  कहा  -- " तुमने  जो  उपकार  किया  है  उसका  बदला  तो  मैं  नहीं  चुका  सकता  , तुम  इसे  स्वीकार  कर  लो  l "  महल  आकर  राजकुमार  ने  वह  माला  अपनी  माँ  को  दी  और   खाना  खाकर  सोया  तो  सोता  ही  रह  गया  l  घर  में  हाहाकार  मच  गया  l  ज्योतिषी  को  बुलाया   और  कहा --- "  तुम्हारी  विद्या  तो  झूठी  हो  गई  मैंने  तो  इससे  कोई  धन  नहीं  लिया  l "  तब  तक  रानी  ने  वह  मोतियों  की  माला  लाकर  दी   और  बताया  कि  यह  उसे  किसी  सेठ  ने  दी  थी  l  ज्योतिषी  ने  कहा  --- "  देखिए  महाराज  !  ज्योतिष  विद्या   झूठी  नहीं  है  l  इसे  आपका  कर्ज  तो  चुकाना  ही  था  ,  साथ  ही  उस  सेठ  से  कर्ज  लेना  भी  था  l   सेठ  से  अपना  कर्ज  लेकर   तथा  आपसे  कर्जमुक्त  होकर  वह  चला  गया  l "  राजा  को  यह  अटल  सत्य  समझ  में  आ  गया   कि  जब  तक  कर्म  बंधन  है  तभी  तक  साथ  है  l  जैसे  ही  कर्मबंधन  समाप्त  हुआ  फिर  कोई  एक  पल  भी  नहीं  रुकता  l  

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