1 . दिन का अधिकांश समय एक बच्चा एकांत में बिताता l न खाने में कोई तर्क , न बाहर निकलने की इच्छा l कहीं जाता तो शीघ्र ही अपनी राह लौट आता l पिता को चिंता हुई l एक दिन पूछ ही लिया --- " बेटा ! आजकल काम -धंधा कुछ नहीं करते l कुछ कष्ट रहता है क्या ? " बेटे ने विनीत भाव से उत्तर दिया ---- " पिताजी ! आप ही तो कहते हैं , मनुष्य को शांति का जीवन बिताना चाहिए l " पिता ने हँसकर कहा ---- "बेटे ! चुपचाप पड़े रहने का नाम शांति नहीं है l कैसी भी स्थिति हो धैर्य रखकर , अनिवार्य दुःखों को स्वयं वीरता पूर्वक झेलता हुआ भी उद्विग्न न हो उसे शांति कहते हैं l "
2. राजा भोज ने नगरवासियों को एक सार्वजनिक भोज दिया l लाखों लोग भांति -भांति के पकवानों -मिष्टान्न खाकर तृप्त हुए l अपनी उदारता की चर्चा व प्रशंसा सुनकर राजा का सीना गर्व से फूल गया l शाम को एक लकड़हारा सिर पर लकड़ी का गट्ठर लिए उन्हें नगर के द्वार पर मिला , उन्होंने उससे पूछा ---- " क्या तुम्हे पता नहीं था कि राजा भोज ने आज सार्वजनिक भोज दिया है अन्यथा तुम्हे यह श्रम क्यों करना पड़ता ? " लकड़हारा बोला ---- "नहीं , मुझे पूरी तरह पता था , पर जो परिश्रम की कमाई खा सकता है , उसे राजा भोज के सार्वजनिक भोज से क्या लेना -देना ? परिश्रम की रुखी रोटी का आनंद मुफ्त के पकवानों में कहाँ ? " ' श्रम और पसीने से उपार्जित जीविका से जो आत्मगौरव जुड़ा है , उसका आनंद इन व्यंजनों से अधिक है l
No comments:
Post a Comment