भौतिक प्रगति के साथ नैतिकता और चरित्र की श्रेष्ठता की ओर कोई ध्यान नहीं दिया गया , इसलिए यह विकास अधूरा है l मनुष्य अपनी बुद्धि का उपयोग अपने स्वार्थ को सिद्ध करने के लिए करने लगा है l जैसे पहले तीर्थ यात्रा का बहुत महत्त्व था , लोगों को तीर्थ स्थान जाकर असीम शांति और ऊर्जा मिलती थी l लेकिन अब तीर्थ भी मनोरंजन के स्थान हो गए हैं l लोगों ने पुरानी मान्यता को दूषित कर दिया l यह मान्यता है कि तीर्थ स्नान से सारे पाप धुल जाते हैं , इसका अर्थ यही था कि ऐसे पवित्र स्थल पर जाने से जीवन में नई चेतना का संचार होता है और बुद्धि सन्मार्ग की ओर प्रेरित होती है l दुर्बुद्धि के कारण लोग इस पवित्र भाव को भूल गए , सोच विकृत हो गई कि ' पाप कमाओ और गंगा में स्नान कर के उनसे छुटकारा पा लो , , ऐसी सोच ने अपराध में और वृद्धि कर दी l आचार्य श्री लिखते हैं ----" यदि इस प्रकार गंगा स्नान से पापों से छुटकारा मिल जाता तो सबसे पहले मछलियाँ और मगरमच्छ स्वर्ग पहुँच जाते जो हर समय गंगाजल में ही रहते हैं l " श्रीमद् भगवद्गीता में भगवान ने कहा है कि निष्काम कर्म से मनुष्य की बुद्धि निर्मल होती है , जाने -अनजाने जो पाप किए हैं वे कटते हैं l ' नि 'स्वार्थ भाव से सेवा के कार्य करने से घर बैठे ही तीर्थ का पुण्य मिल जाता है l
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