हमारे धर्म ग्रंथों के विभिन्न प्रसंगों में मनुष्य के सुखी और सफल जीवन के लिए विभिन्न सूत्र हैं , लेकिन जब वातावरण में नकारात्मकता होती है , दुर्बुद्धि का प्रकोप होता है तब व्यक्ति अच्छाई को नहीं देखता , अच्छाई में से भी बुराई ढूंढ लेता है जैसे शिशुपाल और दुर्योधन को भगवान श्रीकृष्ण में कोई गुण नहीं दीखते थे , शिशुपाल ने तो भगवान को सौ गालियाँ दीं , दुर्योधन ने उन्हें बंदी बनाने का प्रयत्न किया l इसी तरह रावण कितना विद्वान् और शक्तिशाली था l रावण के गुणों को किसी ने नहीं सीखा l रावण ने जो पापकर्म किए वे ही लोगों के मन -मस्तिष्क पर हावी हो गए l कितनी ही पीढ़ियाँ गुजर गईं लेकिन आततायी , अत्याचारी , अहंकारी , ऋषियों को सताने वाला रावण लोगों के मन -मस्तिष्क पर से हटा नहीं , वह आज भी जिन्दा है l ईश्वर धरती पर मनुष्य रूप में अवतार लेते हैं और अपने आचरण से शिक्षा देते हैं l जब युधिष्ठिर ने राजसूय यज्ञ किया , उसमें सबके लिए काम बांटे जा रहे थे l श्रीकृष्ण ने भी अपने लिए काम माँगा l लेकिन पांडवों ने कहा ---- " भगवन ! आपके लिए तो हमारे पास कोई काम नहीं है l " बहुत ज्यादा जोर देने पर उनसे कह दिया गया कि वे अपनी पसंद का काम स्वयं ढूंढ लें l सभी ने देखा कि भगवान श्रीकृष्ण यज्ञ में आदि से अंत तक अतिथियों के चरण धोने , झूंठी पत्तलें उठाने तथा सफाई रखने का काम स्वयं करते रहे l भगवान ने कहा ---- कोई काम छोटा नहीं होता पर बड़ों को छोटे काम भी करने चाहिए ताकि उनमें अहंकार न हो और छोटों में हीनता की भावना उत्पन्न न होने पाए l
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