लघु -कथा ----- 1 . एक दिन पंडित जी की कथा सुनने एक डाकू भी आया l पंडित जी समझा रहे थे ' क्षमा और अहिंसा ' मनुष्य के आभूषण हैं l इनका परित्याग नहीं करना चाहिए l कथा समाप्त हुई l पंडित जी दान -दक्षिणा लेकर गाँव की ओर चल पड़े l बीच में जंगल पड़ता था l जंगल में पहुँचते ही डाकू आ धमका और पंडित जी को सारा धन रख देने को कहा l पंडित जी निडर थे , पास में लाठी थी , उसे लेकर डाकू को मारने दौड़े l अचानक प्रहार से डाकू घबरा गया और विनय पूर्वक बोला ---" महाराज आप तो कह रहे थे ' क्षमा और अहिंसा ' मनुष्य के भूषण हैं , इन्हें नहीं त्यागना चाहिए l " पंडित जी बोले --- " वह तो सज्जनों के लिए था , तेरे जैसे दुष्टों के लिए यह लाठी ही उपयुक्त है l " पंडित जी का रौद्र रूप देखकर डाकू वहां से भाग गया l
2 . एक लकड़हारा अपनी योग्यता के कारण राजा का दोस्त बना और एक दिन वह राज्य मंत्री के पद पर जा पहुंचा l रिश्वत लेने वाले भ्रष्ट कर्मचारी उससे ईर्ष्या करते थे और राजा से उसकी शिकायत करते थे l किसी ने कहा कि उसके पास बहुत सा धन उसके एक बक्से में है l इस शिकायत के आधार पर राजा ने उससे वह संदूक दिखाने को कहा l राजा के आदेश से वह संदूक खोला गया तो उसमें थोड़े से मैले -कुचैले वस्त्र रखे थे l राजा ने पूछा --- 'यह क्या है ? मंत्री ने कहा ---- 'महाराज ! ये वह कपड़े हैं जिन्हें मैं आपकी मित्रता से पहले पहना करता था l इन्हें सुरक्षित इसलिए रखा है ताकि मुझे अपनी पूर्व स्थिति याद रहे , कभी अहंकार न आए और कभी किसी तरह का अन्याय मुझसे न हो l ईश्वर की कृपा से ही मुझे आपकी मित्रता और यह पद मिला , अपनी पूर्व स्थिति को याद रख मैं इसका सदुपयोग करूँ l
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