6 March 2024

WISDOM ------

 प्रकृति  के  नियम  सब के  लिए  एक  समान  हैं  ,  उनमें   जाति  , धर्म , ऊँच -नीच , अमीर -गरीब  किसी  का  कोई  भेदभाव  नहीं  है  l  स्रष्टि  के  सञ्चालन  के  लिए   जो  नियम  ईश्वर  ने  बनाए ,  उनका  पालन  भगवान  स्वयं  भी  करते  हैं  l  प्रकृति  का  नियम  है  कि  जो  इस  संसार  में  आया  है  , उसे  एक  न  एक  दिन  जाना  है ,  मृत्यु  अटल  सत्य  है  l  इसके  साथ  ही  एक  नियम  यह  भी  है  कि  जिसे  धरती  पर  आना  है  ,  निश्चित  समय  तक  इस  धरती  पर  रहना  है  ,  उस  विधान  को  कोई  बदल  नहीं  सकता  l  ----- महाभारत  के  युद्ध  में   सात  योद्धाओं  ने  अन्याय  पूर्ण   तरीके  से  अभिमन्यु  का  वध  कर  दिया  l   भगवान  श्रीकृष्ण  की  बहन  सुभद्रा  का  पुत्र  था  अभिमन्यु  l  सुभद्रा  का  विवाह  भगवान  के  प्रिय  सखा  अर्जुन  से  हुआ  था  l   अभिमन्यु  की  मृत्यु  का  समाचार  सुनकर  सुभद्रा  ने  रोते  हुए  श्रीकृष्ण  से  कहा --- तुम  तो  स्वयं  भगवान  हो ,   अपने  प्राणों  से  भी  प्रिय  भानजे  की   मृत्यु  हो  गई  , और  तुम  रोक  न  सके  l '   भगवान  श्रीकृष्ण  ने  सुभद्रा  को  समझाया  कि  मैं  भगवान  अवश्य  हूँ  ,  लेकिन  प्रकृति  के  नियम  को  मैं  नहीं  बदल  सकता   l  अभिमन्यु  इस  धरती  पर  17  वर्ष   के  लिए  ही  आया  था  l  वक्त  पूरा  हो  गया  ,  फिर  उसे  कोई  नहीं  रोक  सकता   लेकिन  इतनी  कम  आयु  में  भी   उसने  अपनी  वीरता  से  महाराथियों  के  छक्के  छुड़ा  दिए  ,  वीरता  का  कीर्तिमान  स्थापित  किया  l   मृत्यु  और  जन्म  दोनों  ही  निश्चित  है  ,  उनमे  फेर -बदल  करना  मनुष्य  के  हाथ  में  नही  है  l  अभिमन्यु  की  पत्नी  उत्तरा  गर्भवती  थी  ,  तब  अश्वत्थामा  ने   पांडव  वंश  को  समाप्त  करने  के  लिए   एक  तिनके  को  अभिमंत्रित  कर  के  उत्तर  के  गर्भ  को  नष्ट  करने  के  लिए  हवा  में  छोड़  दिया  , मन्त्र  बल  से  वह  तिनका  अस्त्र  बन  गया   और  उत्तरा  की  कोख  में  जा  पहुंचा   लेकिन  गर्भ  में  पल  रहे  इस  पुत्र  को  धरती  पर  आना  ही  था  ,  निश्चित  जीवन  जी  कर  शुकदेव  मुनि  से  श्रीमद् भागवत  कथा   का  श्रवण  करना  ही  था  ,  इसलिए  भगवान  श्रीकृष्ण  ने   सूक्ष्म  रूप  से  उत्तरा    के  गर्भ  में  प्रवेश  कर  गर्भस्थ  शिशु  की    रक्षा  की  l  अश्वत्थामा  के  छोड़े  हुए  अस्त्र  के  प्रहार  को  उन्होंने  सुदर्शन  चक्र  से  रोके  रखा   लेकिन  जिस  पल  पुत्र  का  जन्म  हुआ   उस  एक  क्षण  के  लिए  सुदर्शन  चक्र  को  हटना  पड़ा   , इसलिए  जन्म  होते  ही  पुत्र  की  मृत्यु  हो  गई  l  तब  भगवान  श्रीकृष्ण   ने  अपने  संकल्प  बल  से , धर्म  बल  से  प्रकृति  से   शिशु    के  जीवित  होने  के  लिए  प्रार्थना  की   l  पुत्र  ने  तुरंत  आँखें  खोल  दीं  ,  उसका  नाम  परीक्षित  रखा  गया  l  जाको  राखे  साइयां  , मार  सके  न  कोय  l  बाल  न  बांका  करि  सके  , जो  जग  बैरी  होय  l  

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