पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी लिखते हैं ---- ' इस स्रष्टि की रचना के बाद भगवान ने इस विशाल ब्रह्माण्ड के सुव्यवस्थित सञ्चालन हेतु कुछ नियम व मर्यादायें स्थापित कीं तथा कर्मानुसार फल प्राप्ति का दृढ सिद्धांत बनाया ताकि सारा ब्रह्माण्ड और सभी जीवधारी एक निश्चित विधि -विधान के अनुसार चल सकें l आदर्श नियम वही है जिसका बनाने वाला भी उसका पालन करे l भगवान ने कर्मफल व्यवस्था बनाई और स्वयं ही न्यायधीश का पद सम्हाला l जिस तरह बीज बोने के तुरंत बाद फल की प्राप्ति नहीं होती , उसी प्रकार इस व्यवस्था की यह विशेषता है कि कर्मफल तत्काल नहीं मिलता l समयानुसार हमें अपने कर्म का फल अवश्य ही भोगना पड़ता है l ' जो व्यक्ति पाप कर्म करते हैं , उन्हें तुरंत उसका परिणाम परिणाम नहीं भोगना पड़ता l यह काल निश्चित करता है कि उन्हें अपने कर्मों का फल कब और किस रूप में भोगना पड़ेगा l तुरंत फल न मिलने के कारण लोग कर्म फल व्यवस्था की गंभीरता को नहीं समझते और शीघ्र लाभ प्राप्त करने के लिए दुष्कर्मों की ओर प्रवृत्त होते हैं l कर्मफल व्यवस्था की उपयोगिता बताते हुए श्रीमद् भागवत में भगवान श्रीकृष्ण अपने प्रिय सखा उद्धव से कहते हैं ----- " इतनी सशक्त व्यवस्था के होते हुए भी जरा देर से दंड प्राप्त होने के कारण जब इतनी अव्यवस्था फ़ैल जाती है तब यदि यह दंड विधान बिलकुल ही न रहा होता तब तो यह संसार चल ही न सका होता l " आदर्श नियम वही है जिसका बनाने वाला भी उसका पालन करे l संसार में अव्यवस्था तभी फैलती है जब नियम , आदर्श और उपदेश लोग दूसरों को देते हैं , स्वयं उसका पालन नहीं करते l मुखौटा लगाकर सारा ज्ञान -बखान दूसरों के लिए होता है l परदे के पीछे का सच केवल ईश्वर ही जानते हैं l
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