6 March 2024

WISDOM ----

  पं. श्रीराम  शर्मा  आचार्य जी  लिखते  हैं  ---- ' इस  स्रष्टि  की  रचना  के  बाद   भगवान  ने  इस  विशाल  ब्रह्माण्ड   के  सुव्यवस्थित  सञ्चालन  हेतु   कुछ  नियम  व  मर्यादायें  स्थापित  कीं   तथा  कर्मानुसार  फल  प्राप्ति  का  दृढ  सिद्धांत   बनाया   ताकि  सारा  ब्रह्माण्ड  और   सभी  जीवधारी   एक  निश्चित  विधि -विधान   के  अनुसार  चल  सकें  l  आदर्श  नियम   वही  है जिसका  बनाने  वाला   भी  उसका   पालन  करे  l  भगवान  ने  कर्मफल  व्यवस्था  बनाई  और  स्वयं  ही  न्यायधीश  का  पद  सम्हाला  l      जिस  तरह   बीज  बोने  के  तुरंत   बाद  फल  की  प्राप्ति  नहीं  होती    , उसी  प्रकार   इस व्यवस्था  की  यह  विशेषता  है  कि   कर्मफल  तत्काल  नहीं  मिलता  l  समयानुसार  हमें  अपने  कर्म  का  फल   अवश्य  ही  भोगना  पड़ता  है  l  '                                                                                    जो  व्यक्ति  पाप  कर्म  करते  हैं ,  उन्हें  तुरंत  उसका  परिणाम  परिणाम  नहीं  भोगना  पड़ता   l  यह  काल  निश्चित  करता  है  कि  उन्हें    अपने  कर्मों  का  फल  कब  और  किस  रूप  में  भोगना  पड़ेगा  l   तुरंत  फल  न  मिलने  के  कारण  लोग  कर्म  फल  व्यवस्था  की  गंभीरता  को  नहीं  समझते  और  शीघ्र  लाभ  प्राप्त  करने  के  लिए  दुष्कर्मों  की  ओर  प्रवृत्त  होते  हैं  l     कर्मफल  व्यवस्था  की  उपयोगिता  बताते  हुए   श्रीमद् भागवत  में  भगवान  श्रीकृष्ण  अपने  प्रिय  सखा  उद्धव  से  कहते  हैं  ----- " इतनी  सशक्त  व्यवस्था  के  होते  हुए  भी   जरा  देर  से  दंड  प्राप्त  होने  के  कारण  जब  इतनी  अव्यवस्था  फ़ैल  जाती  है   तब  यदि  यह  दंड  विधान  बिलकुल   ही  न  रहा  होता   तब  तो  यह  संसार  चल  ही  न  सका  होता  l  "    आदर्श  नियम  वही  है   जिसका  बनाने  वाला  भी   उसका  पालन  करे  l   संसार  में  अव्यवस्था   तभी  फैलती  है  जब  नियम ,  आदर्श  और  उपदेश  लोग  दूसरों  को  देते  हैं ,   स्वयं   उसका  पालन  नहीं  करते  l   मुखौटा  लगाकर  सारा  ज्ञान -बखान  दूसरों  के  लिए  होता  है  l  परदे  के  पीछे  का  सच  केवल  ईश्वर  ही  जानते  हैं  l  

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