पं . श्रीराम शर्मा आचार्य जी लिखते हैं ---- " अहंकार ज्ञान के सारे द्वार बंद कर देता है l अहंकारी की प्रगति जितनी तीव्र होती है , उसका पतन उससे भी अधिक तीव्र गति से होता है l जीवन में पूर्णता की प्राप्ति पात्रता एवं नम्रता से होती है , अभिमान और अहंकार से नहीं l " ---- एक दिन पानी से भरे कलश पर रखी हुई कटोरी ने घड़े से कहा --- " कलश ! तुम बड़े उदार हो l अपने पास आने वाले प्रत्येक पात्र को भर देते हो l किसी को खाली नहीं जाने देते l " कलश ने उत्तर दिया --- " हाँ ! मैं अपने पास आने वाले प्रत्येक पात्र को भर देता हूँ , मेरे अंतर का सारा सार दूसरों के लिए है l " कटोरी बोली ---- " लेकिन मुझे कभी नहीं भरते जबकि मैं हर समय तुम्हारे सिर पर ही मौजूद रहती हूँ l " घड़े ने उत्तर दिया ---- " इसमें मेरा कोई दोष नहीं है , दोष तुम्हारे अहंकार का है l तुम अभिमान पूर्वक मेरे सिर पर चढ़ी रहती हो , जबकि अन्य पात्र मेरे पास आकर झुकते हैं और अपनी पात्रता सिद्ध करते हैं l तुम भी अभिमान छोड़कर मेरे सिर से उतर कर विनम्र बहो बनों , मैं तुम्हे भी भर दूंगा l "
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