पं . श्रीराम शर्मा आचार्य जी लिखते हैं ---- " आज के युग की समस्या ही यह है कि आज जो अधर्म करते हैं , वे भी धर्म का नाम लेकर ही करते हैं l आज जो अनीति करते हैं , वे भी नीति की ही दुहाई देते हैं l इसलिए धार्मिक स्थलों पर अधर्म घटता है , विद्या के मंदिरों में उपद्रव होता है और नीति नियंताओं द्वारा अनैतिक कृत्य होता दिखाई पड़ता है l चोरी करने जाता व्यक्ति स्वयं को समझाता है कि मैं चोरी नहीं कर रहा हूँ , मैं तो अमीरों को मिला धन लेकर गरीबों में बाँट दूंगा l इस तरह वह स्वयं को यह प्रमाणित करने की कोशिश करता है कि वह जो कर रहा है , वो बड़ा धार्मिक कृत्य है l " श्रीमद् भगवद्गीता में भगवान कहते हैं ---- आसुरी प्रवृत्ति वाला व्यक्ति करता सब गलत है , पर मन में यह मानकर बैठता है कि वो बिलकुल सही है क्योंकि उसका चित्त अज्ञान और अहंकार से ढका हुआ है l धीरे -धीरे उसको सच का पता चलना ही बंद हो जाता है l श्री भगवान कहते हैं --- आसुरी प्रवृत्ति वाले मनुष्यों को अपने सभी प्रतिस्पर्धी अपने दुश्मन नजर आते हैं , उनमें दूसरों को नष्ट करने की बड़ी तीव्र लालसा होती है l आसुरी प्रवृत्ति वाले स्वयं को सर्वसमर्थ , बलवान और सुखी मानते हैं l समस्या यह है कि आसुरी प्रवृत्ति का देवत्व में रूपांतरण बहुत कठिन है , व्यक्ति अपने अहंकार को नहीं छोड़ता l कभी किसी के जीवन में कोई ऐसी दिल को छू लेने वाली घटना घट जाए , कुछ ऐसा हो जाये जो उसने कभी सोचा भी न था तब वह व्यक्ति रूपांतरित हो जाता है l ऐसा लाखों में कोई एक के साथ होता है l इतने प्रवचन , सत्संग सब ऊपर से निकल जाते हैं , कुछ असर नहीं होता l एक प्रसंग है ---- निरजानंद नामक एक स्वामी थे l एटा के पास गंगा किनारे रहते थे l उनके गाँव में एक डकैत बीमार हो गया l कोई उसकी सेवा करने नहीं गया l स्वामी जी सब में ईश्वर का वास है , इस सत्य को मानते थे इसलिए उसकी सेवा करने गए l उन्होंने उस डकैत की दिन -रात सेवा की जिससे वह स्वस्थ हो गया और अब उसका जीवन बदल गया l वह बोला ---" महाराज ! हमारे जितने भी साथी थे , सब बीमारी के समय भाग गए , किसी ने भी नहीं पूछा l केवल आपने ही हमारी सेवा की l अब हम आपकी सेवा करेंगे l " अब वह स्वामी जी की पूजा की व्यवस्था कर देता , नित्य ही उनके लिए फलाहार आदि बना देता , उनके पैर दबाता , हर तरह से सेवा करता l स्वामी जी के महाप्रयाण के बाद वह उन्हें अपना गुरु मानकर उनकी फोटो की पूजा करने लगा , मन्त्र जपता , और गाँव में कोई बीमार हो , उनकी भी सेवा करता l अंतिम समय में भी वह अपने गुरु के ही ध्यान में डूबा था l उसने अपने कर्मों को सुधारा और अंतिम समय में अपने गुरु का ,ईश्वर का स्मरण करते हुए मृत्यु का आलिंगन किया l आचार्य श्री कहते हैं --- यह मनुष्य जीवन अनमोल है , हमारे पास अपने कर्मों को सुधारने का समुचित अवसर है l
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