संसार में जिनके पास धन -वैभव , शक्ति , साधन सब कुछ है , उन्हें इस बात का अहंकार होता है कि वे इस भौतिक संपदा से सब कुछ खरीद सकते हैं l भौतिक संपदा के साथ बुराइयाँ तो बिना ख़रीदे ही खिंची चली आती है लेकिन यदि सद्गुण चाहिए तो उनके लिए कठिन साधना करनी पड़ती है l जैसे सत्य बोलना , दया , करुणा , ईमानदारी , कर्तव्यपालन , सब में एक ही परमात्मा को देखना ---आदि अनेक सद्गुणों को अपने व्यवहार में लाना हर किसी के लिए संभव नहीं है l जो ऐसे सद्गुणी होते हैं , ईश्वर के बताए मार्ग पर चलते हैं उन्हें ही ईश्वर ' सद्बुद्धि का , विवेक का ' वरदान देते हैं l' विवेक बुद्धि ' होने पर ही जीवन में सही निर्णय लेना संभव होता है l ----------------- सम्राट बिंबसार को सत्य का स्वरुप जानने की इच्छा हुई l उन्होंने भगवान महावीर से कहा --- " भगवन ! मैं सत्य को जानना चाहता हूँ l उसको प्राप्त करना चाहता हूँ और उसे प्राप्त करने के लिए मैं किसी भी ऊँचाई तक पहुँचने में सक्षम हूँ l " सम्राट की बात सुनकर भगवान महावीर को लगा कि दुनिया को जीतने वाला सम्राट सत्य को भी उसी प्रकार जीतने का इच्छुक है l अहंकार के वशीभूत होकर वह सत्य को भी क्रय करने की वस्तु मान बैठा है और उसे उसी तरह प्राप्त करने का इच्छुक है l उन्होंने बिंबसार को समझाया --- " वत्स ! सत्य को न तो ख़रीदा जा सकता है और न उसे दान या भिक्षा के द्वारा प्राप्त किया जा सकता है l सत्य कोई राज्य भी नहीं है जिस पर आक्रमण कर के तुम विजय प्राप्त कर लो l सत्य को प्राप्त करने के लिए अहं को गलाना पड़ता है और अहंकार शून्य होने पर ही सत्य का बोध होता है l " बिंबसार को अपनी गलती का अनुभव हो गया l
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