धरती पर अत्याचार और अन्याय का अंत करने के लिए , दुष्टता का उन्मूलन करने के लिए ही भगवान धरती पर अवतरित होते हैं l जिस समय भगवान श्रीकृष्ण का जन्म हुआ उन दिनों कुछ ऐसी स्थिति थी जैसे आसुरी शक्तियों ने राजाओं में प्रवेश कर लिया था , उनके अत्याचार से प्रजा बहुत दुःखी थी l मगध नरेश जरासंध ने उस समय के 86 प्रतिशत राजाओं को कैद कर लिया था l केवल 14 प्रतिशत शेष बचे राजाओं को कैद कर के वह उनकी बलि देना चाहता था l वह इस मनमानी को ही धर्म कहता था l इस क्रूर नर संहार को रोकना ही सबसे बड़ा धर्म था l जरासंध ने इतनी विशाल शक्ति अर्जित कर ली थी कि सामने से युद्ध कर के उसे पराजित करना संभव नहीं था l इसलिए श्रीकृष्ण ने युधिष्ठिर से कहा --- आप भीम और अर्जुन को मुझे सौंप दीजिए , हम युक्तिपूर्वक जरासंध का वध करेंगे l श्रीकृष्ण , अर्जुन और भीम ब्राह्मण का वेश बनाकर मगध की राजधानी पहुंचे l उन्होंने परकोटे के दरवाजे से प्रवेश न करके चैतक्य पर्वत का शिखर तोड़कर जरासंध के महल जा पहुंचे l श्रीकृष्ण का कहना था कि शत्रु के घर में इसी तरह प्रवेश किया जाता है l जरासंध समझ गया कि ये लोग क्षत्रिय है l तब श्रीकृष्ण ने कहा कि तुम बंदी बनाए गए राजाओं को छोड़ दो या फिर हम तुम्हे युद्ध के लिए ललकारते हैं l जरासंध भी अहंकारी था श्रीकृष्ण को तो वह ग्वाला समझता था और अर्जुन को बालक l वह भीम से युद्ध करने को राजी हो गया l कहते हैं तेरह दिन और तेरह रात बिना विश्राम किए भीम और जरासंध लगातार लड़ते रहे l चौदहवें दिन जब जरासंध कुछ थक सा गया तब भीम ने श्रीकृष्ण का नीतियुक्त इशारा पाकर जरासंध का वध कर दिया l इसके बाद जरासंध द्वारा कैद किए गए सभी राजाओं को मुक्त कर दिया गया l भगवान श्रीकृष्ण ने उन्हें उपदेश देते हुए कहा --- वैभव और अधिकार को समाज या ईश्वर की धरोहर मानकर उसका सदुपयोग करना चाहिए l अपनी संपत्ति और वैभव का कभी अहंकार न करना क्योंकि अहंकार ही पतन का कारण होता है l
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