महाभारत में भगवान श्रीकृष्ण युधिष्ठिर से कहते हैं ---- जीव अकेले जन्म लेता है , अकेले मरता है तथा अकेले ही पाप , पुण्य का फल भोगता है l भगवान कहते हैं --- मनुष्य बहुत बड़े भ्रम में है कि हमारे कुटुम्बी और साथी सदा हमारे साथ रहेंगे तथा पाप , पुण्य के फल भोग में हमारा साथ देंगे l किन्तु यह संभव नहीं है l डाकू रत्नाकर को भी यह भ्रम हो गया था l वह अपने कुटुम्बियों को सुख पहुँचाने के लिए डाके डाला करता था और सोचता था कि इस पाप में मेरे परिवार वाले भी साझीदार बनेंगे l एक बार नारद जी के कहने पर उसने अपने परिवार वालों से पूछा किन्तु उन्होंने पाप कर्मों और उसके परिणामों में अपनी हिस्सेदारी से इनकार कर दिया , तब कहीं रत्नाकर का मोह भंग हुआ l वह दुष्कर्मों से विरत होकर सत्कर्मों द्वारा डाकू से महर्षि वाल्मीकि बन गया l
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