पं . श्रीराम शर्मा आचार्य जी लिखते हैं ---- ' ज्ञान प्रकाश है , जबकि अज्ञान अँधियारा है l जीवन में सफलतापूर्वक चलने के लिए ज्ञान के प्रकाश की जरुरत होती है l ज्ञान स्वयं की आँखें हैं , इसे स्वयं ही पाना होता है l स्वयं का ज्ञान ही असहाय मनुष्य का एकमात्र सहारा है l "------ सूफियों में बाबा फरीद का कथा -प्रसंग है ---- बाबा फरीद ने अपने शिष्यों से कहा ---" ज्ञान को उपलब्ध करो l इसके अतिरिक्त कोई दूसरा मार्ग नहीं है l " यह सुनने पर शिष्य नम्र भाव से बोला ---- " बाबा ! रोगी तो हमेशा वैद्य के पास ही जाता है , स्वयं चिकित्साशास्त्र का ज्ञान अर्जित करने के फेर में नहीं पड़ता l आप मेरे मार्गदर्शक हैं , गुरु हैं l यह मैं जानता हूँ कि आप मेरा उद्धार करेंगे l तब फिर स्वयं के ज्ञान की क्या आवश्यकता है l " यह सुनकर बाबा फरीद ने एक कथा सुनाई ----- एक गाँव में एक वृद्ध रहता था l मोतियाबिंद के कारण अँधा हो गया तो उसके बेटों ने उसकी आँखों की चिकित्सा करानी चाही l वृद्ध ने अस्वीकार कर दिया और कहने लगा --- " भला मुझे आँखों की क्या जरुरत l तुम आठ मेरे पुत्र हो , आठ बहुएं हैं , तुम्हारी माँ है l ये चौतींस आँखें तो मुझे मिली हैं l मेरी दो नहीं तो क्या हुआ ? " पिता ने पुत्र की बात नहीं मानी l कुछ दिनों के बाद अचानक एक रात घर में आग लग गई l सभी अपनी जान बचाने के लिए भागे , वृद्ध की याद किसी को न रही l वह उस आग में जलकर भस्म हो गया l वृद्ध की स्वयं की आँखें होतीं तो वह भी भाग कर अपनी जान बचा लेता l
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