14 April 2024

WISDOM -----

   पं . श्रीराम  शर्मा  आचार्य जी  लिखते  हैं  ---- '  केवल  शिक्षा  और  बुद्धि  का  विकास  हो  लेकिन  मनुष्य  के  द्रष्टिकोण  का  परिष्कार  न  हो , ह्रदय  में  संवेदना  न  हो , ईमानदारी  न  हो  ,  ऐसा  ह्रदयहीन   दुनिया  का  सफाया  कर  के  रहेगा  ,  उसका  सत्यानाश  और  सर्वनाश  कर  के  रहेगा  l  जितनी  पैनी  अक्ल  होगी  ,  उतने  ही  तीखे  विनाश  के  साधन  होंगे  l  बुद्धि  के   विकास  के  साथ -साथ  लोगों  का  ईमान , द्रष्टिकोण  , उनका  चिन्तन  परिष्कृत  होना  चाहिए  l  बड़ी  फक्त्रियाँ  नहीं  , बड़े  इनसान   बनाने   चाहिए  l "    प्रसंग  है  ----ब्रिटिश  संसद  में   वेतन  बढ़ाने  की  मांग  को  लेकर   दार्शनिकों  की  राय  को  जानने  के  लियर   पार्लियामेंट  में   कुछ  विशेषज्ञों  को  बुलाया  गया  ,  उनमें  से  एक  थे ---जान  स्टुअर्ट  मिल   l  वे  उस  ज़माने  के  माने  हुए  फिलास्फर  और  महान  अर्थशास्त्री  थे  l  जान  स्टुअर्ट  मिल  आए  और  उन्होंने  छूटते  ही  कहा  --- " मजदूरों  का  वेतन  न  बढ़ाया  जाये  l  वेतन  बढ़ाने  के  मैं  सख्त  खिलाफ  हूँ  l  उन्होंने  अपनी  गवाही  में  कहा   कि  जो  वेतन  बढ़ाया  जा  रहा  है  ,  उसकी  तुलना  में  उनके  लिए  स्कूलों  का  प्रबंध  किया  जाए  ,  उनके  पढ़ने -लिखने  का  , दवा -चिकित्सा  का  इंतजाम  किया  जाए  l  उनके  शिक्षण  का  प्रबंध  किया  जाये  और  जब  वे   सभी   और  सुसंस्कृत   होने  लगे  ,  तब  उनके  पैसों  में  वृद्धि  की  जाए  l  अन्यथा  पैसों  में  वृद्धि  करने  से  मुसीबत  आ   जाएगी  l  ये   मजदूर    तबाह  हो  जाएंगे  l  "    उनकी  बात  वहीँ  खत्म  हो  गई  और  सभी  ने  एक  मत  से  मजदूरों  का  वेतन   डेढ़  गुना  बढ़ा  दिया  l  तीन  साल  बाद   जब   जब  इस  बात  की  जाँच  की  गई  कि     डेढ़  गुना  वेतन  जो  बढ़ाया  गया   उसका  लाभ  मजदूरों  को  क्या   लाभ  मिला   ?  मालूम  पड़ा  कि  मजदूरों  की  बस्तियों  में  जो  शिकायतें  पहले  थीं  ,  वे  पहले  से  दोगुनी  हो  गईं  l  खून -खराबा  पहले  से  दोगुना  हो  गया  l  शराबखाने   और  चारित्रिक  पतन  करने  वाले  साधन दुगुने , चौगुने  हो  गए   और  उनसे  होने  वाली  बीमारियाँ  दुगुनी , चौगुनी  हो  गईं  l  तब  लोगों  को  समझ  आया  कि  जे . एस . मिल  की  गवाही  सही  थी   कि   जब  तक  धन  के  सदुपयोग  करने  की  चेतना  विकसित  न  हो  वेतन  नहीं  बढ़ना  चाहिए  l   हमारे  ऋषियों  ने  भी  कहा  है  कि  धन  जीवन  के  लिए  अनिवार्य  है  ,  लेकिन  हमें  इसका  सदुपयोग  करना  आना  चाहिए   यह  बात  केवल  मजदूरों  के  लिए  ही  नहीं   , डाक्टर ,  इंजीनियर , व्यापारी , नेता , अधिकारी   आदि  हर  व्यक्ति  पर  लागू  होती  है  l  आज  सारा  संसार  धन  के  ही  पीछे  भाग  रहा  है   लेकिन  चेतना  परिष्कृत  न  होने  से ,  संवेदना , ईमानदारी , नैतिकता    आदि  आध्यात्मिक  गुणों  से  जुड़ाव  न  होने  के  कारण  ही   आज  सारा  संसार    बारूद  के  ढेर  पर  खड़ा  है  l  मानव  सभ्यता  के  इस  विनाश  को  धन  से  नहीं  बचाया  जा  सकता  , धन  तो  और  घातक  हथियार  बनाकर  उसे  विनाश  की  ओर  धकेल  रहा  है  l  केवल  अध्यात्म  में  ही  वह  ताकत    है , जिसका  सहारा  लेकर    इस  संसार  को  विनाश  से   बचाया  जा  सकता  है  l  

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