पं . श्रीराम शर्मा आचार्य जी लिखते हैं ---- ' केवल शिक्षा और बुद्धि का विकास हो लेकिन मनुष्य के द्रष्टिकोण का परिष्कार न हो , ह्रदय में संवेदना न हो , ईमानदारी न हो , ऐसा ह्रदयहीन दुनिया का सफाया कर के रहेगा , उसका सत्यानाश और सर्वनाश कर के रहेगा l जितनी पैनी अक्ल होगी , उतने ही तीखे विनाश के साधन होंगे l बुद्धि के विकास के साथ -साथ लोगों का ईमान , द्रष्टिकोण , उनका चिन्तन परिष्कृत होना चाहिए l बड़ी फक्त्रियाँ नहीं , बड़े इनसान बनाने चाहिए l " प्रसंग है ----ब्रिटिश संसद में वेतन बढ़ाने की मांग को लेकर दार्शनिकों की राय को जानने के लियर पार्लियामेंट में कुछ विशेषज्ञों को बुलाया गया , उनमें से एक थे ---जान स्टुअर्ट मिल l वे उस ज़माने के माने हुए फिलास्फर और महान अर्थशास्त्री थे l जान स्टुअर्ट मिल आए और उन्होंने छूटते ही कहा --- " मजदूरों का वेतन न बढ़ाया जाये l वेतन बढ़ाने के मैं सख्त खिलाफ हूँ l उन्होंने अपनी गवाही में कहा कि जो वेतन बढ़ाया जा रहा है , उसकी तुलना में उनके लिए स्कूलों का प्रबंध किया जाए , उनके पढ़ने -लिखने का , दवा -चिकित्सा का इंतजाम किया जाए l उनके शिक्षण का प्रबंध किया जाये और जब वे सभी और सुसंस्कृत होने लगे , तब उनके पैसों में वृद्धि की जाए l अन्यथा पैसों में वृद्धि करने से मुसीबत आ जाएगी l ये मजदूर तबाह हो जाएंगे l " उनकी बात वहीँ खत्म हो गई और सभी ने एक मत से मजदूरों का वेतन डेढ़ गुना बढ़ा दिया l तीन साल बाद जब जब इस बात की जाँच की गई कि डेढ़ गुना वेतन जो बढ़ाया गया उसका लाभ मजदूरों को क्या लाभ मिला ? मालूम पड़ा कि मजदूरों की बस्तियों में जो शिकायतें पहले थीं , वे पहले से दोगुनी हो गईं l खून -खराबा पहले से दोगुना हो गया l शराबखाने और चारित्रिक पतन करने वाले साधन दुगुने , चौगुने हो गए और उनसे होने वाली बीमारियाँ दुगुनी , चौगुनी हो गईं l तब लोगों को समझ आया कि जे . एस . मिल की गवाही सही थी कि जब तक धन के सदुपयोग करने की चेतना विकसित न हो वेतन नहीं बढ़ना चाहिए l हमारे ऋषियों ने भी कहा है कि धन जीवन के लिए अनिवार्य है , लेकिन हमें इसका सदुपयोग करना आना चाहिए यह बात केवल मजदूरों के लिए ही नहीं , डाक्टर , इंजीनियर , व्यापारी , नेता , अधिकारी आदि हर व्यक्ति पर लागू होती है l आज सारा संसार धन के ही पीछे भाग रहा है लेकिन चेतना परिष्कृत न होने से , संवेदना , ईमानदारी , नैतिकता आदि आध्यात्मिक गुणों से जुड़ाव न होने के कारण ही आज सारा संसार बारूद के ढेर पर खड़ा है l मानव सभ्यता के इस विनाश को धन से नहीं बचाया जा सकता , धन तो और घातक हथियार बनाकर उसे विनाश की ओर धकेल रहा है l केवल अध्यात्म में ही वह ताकत है , जिसका सहारा लेकर इस संसार को विनाश से बचाया जा सकता है l
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