पं . श्रीराम शर्मा आचार्य जी लिखते हैं ----- " बदला जाए द्रष्टिकोण तो इनसान बदल सकता है , द्रष्टिकोण में परिवर्तन से जहान बदल सकता है l यदि हमारा नजरिया , हमारा द्रष्टिकोण सकारात्मक है तो जीवन की दिशा ही बदल जाती है , जीवन की रंगत निखरती है और यदि नजरिया नकारात्मक हो तो जीवन की दिशा उस गर्त में जाती है जहाँ से उबरना , निकलना आसान नहीं होता है l यह निर्णय हमें लेना है कि हमें किस नजरिए को अपनाना है l महाभारत में जब जुए में हारने पर पांडवों को वनवास हुआ तो उन्होंने इसका दुःख नहीं मनाया , विलाप नहीं किया , अपने दुःख के लिए किसी को दोष नहीं दिया l उन्होंने इस कठिन समय को चुनौती माना और तपस्या कर दिव्य अस्त्र प्राप्त किए , अपनी शक्ति और आत्मविश्वास को बढ़ाया l दूसरी ओर दुर्योधन आदि कौरव राजमहल में सुख - भोग में रहे , उन्होंने छल , कपट , षड्यंत्र की नकारात्मक राह का चयन कर स्वयं अपने पतन की कहानी लिख ली l मनुष्य का जैसा द्रष्टिकोण होता है वह उसी के अनुसार जीवन की व्याख्या करता है , उसी के अनुरूप कार्य करता है और उसी के अनुसार फल भोगता है l गुरु द्रोणाचार्य कौरव , पांडव सभी को अस्त्र -शस्त्र की शिक्षा देते थे l एक बार उनका मन दुर्योधन और युधिष्ठिर की परीक्षा लेने का हुआ , उन्होंने राजकुमार दुर्योधन को अपने पास बुलाकर कहा --- " वत्स ! तुम समाज में अच्छे आदमी की परख करो और वैसा एक व्यक्ति खोजकर मेरे सामने उपस्थित करो l " दुर्योधन ने कहा --- ' जैसी आज्ञा ' l और वह अच्छे आदमी की खोज में निकल पड़ा l कुछ दिनों बाद दुर्योधन आचार्य के पास आकर बोला --- " गुरुदेव ! मैंने कई नगरों और गांवों का भ्रमण किया , परन्तु कहीं भी कोई अच्छा आदमी नहीं मिला l इस कारण मैं किसी को आपके पास नहीं ला सका l " इसके बाद द्रोणाचार्य ने राजकुमार युधिष्ठिर को अपने पास बुलाया और कहा --- " बेटा ! तुम कहीं से भी कोई बुरा आदमी खोजकर ला दो l " युधिष्ठिर गुरु की आज्ञा से बुरे आदमी की खोज में निकल पड़े l काफी दिनों बाद वे लौटे और आचार्य से कहा ----" गुरुदेव ! मैंने सब जगह बुरे आदमी की खोज की , पर मुझे कोई भी बुरा आदमी नहीं मिला l इस कारण मैं खाली हाथ लौट आया l " शिष्यों ने पूछा --- " गुरुदेव ! ऐसा क्यों हुआ कि दुर्योधन को कोई अच्छा आदमी नहीं मिला और युधिष्ठिर कोई बुरा आदमी खोज नहीं सके l " आचार्य द्रोणाचार्य ने कहा ---" जो व्यक्ति जैसा होता है , उसे सारे लोग वैसे ही दिखाई पड़ते हैं इसलिए दुर्योधन को कोई अच्छा व्यक्ति नहीं दिखा और युधिष्ठिर को कोई बुरा आदमी नहीं मिल सका l " वास्तव में हमें संसार वैसा ही दिखाई देता है , जैसा हमारा देखने का नजरिया होता है l
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