इंद्र का वैभव नष्ट हो रहा था l वे बड़े चिंतित हुए और राजर्षि प्रह्लाद के पास जाकर उसका कारण पूछा l प्रह्लाद ने बताया --- राजन तुमने अहिल्या जैसी सती -साध्वी का शील नष्ट किया है l जब तक उसका प्रायश्चित कर पुन: शील संग्रह नहीं करोगे , अपने वैभव को भी बचा नहीं सकोगे l लोभी इंद्र ने अपने को प्रह्लाद का अतिथि बताकर , उन्ही का शील मांग लिया l प्रह्लाद ने अपना शील उन्हें दान कर दिया l ऐसा करते ही उनके शरीर से तीन ज्योति पुरुष निकले और बोले --- हम सत्य , धर्म और वैभव हैं , जहाँ चरित्र ( शील ) नहीं रहता , वहां हम भी नहीं रहते l प्रह्लाद ने कहा --- मैंने इंद्र को नेक सलाह देकर सत्य का तथा अतिथि को याचित वास्तु दान कर धर्म का ही पालन किया है l अत: आपका जाना उचित नहीं है l फिर मैंने शील दान ही तो किया है l जिस जीवन देवता की आराधना से मैंने शील अर्जित किया था , उसे मैं पुन: संग्रह कर लूँगा l प्रह्लाद की यह बात सुनकर जाते हुए सत्य , धर्म और वैभव के चरण रुक गए और प्रह्लाद को अपने खोये हुए चारों देव वापस मिल गए l महामानव हर स्थिति में इस बहुमूल्य जीवन संपदा को नष्ट नहीं करते इस कारण उन्हें प्रतिकूल परिस्थितियों में दैवी अनुदान भी मिलते हैं l
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